सुकांत तिवारी, दिल्ली

संसद की लोक लेखा समिति यानी पीएसी ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का कर्ज नहीं चुकाने वाले बड़े कारपोरेट घरानों के नाम सार्वजनिक किए जाने की पहल की है। पीएसी प्रमुख केवी थॉमस का मानना है कि ऐसा करने से बड़े व्यवसायी शर्मिंदा होंगे और सार्वजनिक बैंकों से लिया गया भारी-भरकम कर्ज चुकाने की दिशा में कदम उठाएंगे। अगर ऐसा होता है तो पीएसी का यह प्रयास देश के सरकारी बैंकों के पुनरुद्धार के लिए रामबाण साबित होगा। ऐसा इसलिए कि इन बैंकों से बड़े व्यवसायियों द्वारा लिया गया कर्ज (जिसे अब तक नहीं चुकाया गया है) 9.8 लाख करोड़ रुपए तक जा पहुंचा है। निश्चित तौर पर यह कोई मामूली राशि नहीं है कि उसे व्यवसायियों द्वारा देश के औद्योगिक विकास के योगदान के नाम पर माफ कर दिया जाए। इसका दूसरा पहलू यह है कि हमारे कृषि-प्रधान देश की राजनीतिक पार्टी खुद को किसानों की हितैषी बताती है मगर इस बात की पोल काफी पहले ही खुल चुकी है कि आज तक देश में नेताओं ने किसानों के नाम पर महज अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकी हैं।

अब एक बार फिर यह पोल खुल रही है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से लिए गए कुल 9.8 लाख करोड़ रुपए के कर्ज में से महज एक फीसद कर्ज ऐसा है, जो किसानों द्वारा लिया गया है। इसमें से सत्तर फीसद देश के बड़े कारपोरेट घरानों द्वारा लिया गया है और बाकी का अन्य कुछ मझोले व्यवसायियों द्वारा। इससे स्पष्ट है कि नेताओं द्वारा किसानों को कर्ज देने के नाम का केवल ढोल ही पीटा गया है जबकि कर्ज का असली मजा तो बड़े-बड़े कारपोरेट घराने लूट रहे हैं। यह बात भी किसी से छुपी नहीं है कि जब कोई किसान जाने या अनजाने में लिया गया कर्ज तय समय पर नहीं चुका पाता है तो बैंककर्मी कर्ज वसूलने के लिए क्या-क्या तरीके अपनाते हैं। आखिर किस प्रकार ये उन बकाएदारों के नाम व फोटो तक अखबारों में छपवा देते हैं। मगर यही नियम जब बड़े कारपोरेट घरानों पर लागू करने की बात आती है तो जैसे बैंककर्मियों को सांप सूंघ जाता है और वे उनके नाम तक सार्वजनिक नहीं करते।

केवी थॉमस का कहना है कि इस हालत के लिए बड़े कारपोरेट घराने तो जिम्मेदार हैं ही, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की भी जवाबदेही बनती है और इन बैंकों को बताना चाहिए कि इतनी बड़ी रकम बतौर कर्ज देते समय इन्होंने गारंटी के रूप में क्या लिया? साथ ही इन्हें यह भी बताना चाहिए कि बड़े बकाएदारों द्वारा कर्ज न चुकाए जाने पर इन्होंने उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की? किंगफिशर एअरलाइंस के मालिक विजय माल्या का सार्वजनिक क्षेत्र से लिया गया भारी-भरकम कर्ज न चुका कर देश से भाग जाना एक बड़ा अपराध है। माल्या बेशक एक भगोड़े हैं, जो ब्रिटेन में रह कर भारतीय बैंकिग व्यवस्था और कानून की खिल्ली उड़ा रहे हैं। इस पर देशवासी भी खूब चुटकियां लेते रहे हैं। जबकि सच्चाई है कि माल्या के अलावा भी कई बड़े-बड़े बकाएदार देश में ही शानो-शौकत से रह रहे हैं और उनके नाम हम सबसे छुपाए जा रहे हैं।