अंगरेजों से आजादी के लिए न जाने कितनी ही लड़ाइयां हमने लड़ीं, अंतत: आजाद तो हुए पर एक नई गुलामी के साथ। अंगरेज तो खुलेआम कहते थे कि तुम गुलाम हो पर अब तो हम आजाद होकर भी गुलाम हैं। आज भी गरीबी चारों तरफ फैली हुई है जो हर तरह की गुलामी और शोषण के लिए जमीन तैयार करती है।
विकास के तमाम दावों के बावजूद आम आदमी बदहाली के हाशिये पर पड़ा है। बेरोजगार युवा वर्ग रोजगार के लिए भटक रहा है और महंगाई का पारा तो वैसे ही गरम है। आरक्षण के चलते योग्य छात्रों को मौका नहीं मिल रहा और महिलाओं की शिक्षा तो रामभरोसे ही है।
एक तरफ अनाज सड़ रहा है तो दूसरी तरफ लोग भूखे पेट भी सो रहे हैं। गर्म कपड़ों की भरमार के बावजूद लोग ठंड से जान गंवा रहे हैं। मनरेगा की मजदूरी तक में बेहिसाब घपला होता है। ऐसी आजादी की कल्पना तो नहीं की थी गांधी, सुभाष और टैगोर जैसे महापुरुषों ने। असल मायने में हम तब आजाद होंगे जब इन समस्याओं से पार पा लेंगे। देखना है कि ऐसा आखिर कब तक हो पाता है।
अभिषेक दुबे, दादरा एवं नगर हवेली
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