पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत ने कई क्षेत्रों में अच्छी प्रगति दर्ज की। इसने देश के विकास में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। लेकिन इन सभी क्षेत्रों में लैंगिक समानता हासिल करने में हमारा देश अभी भी काफी पिछड़ा हुआ है। लगभग सभी जगहों पर महिलाओं और पुरुषों की भागीदारी में जमीन और आसमान का फर्क है, जो किसी भी नजरिए से एक बराबरी आधारित सभ्य समाज में स्वीकार्य नहीं हो सकता। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2005 से रोजगार में महिलाओं की भागीदारी का स्तर लगातार गिर रहा है, जबकि पढ़ी-लिखी महिलाओं की संख्या में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में केवल 27 फीसद महिलाओं की ही भागीदारी रोजगार में सुनिश्चित हो पाई है जो उम्मीद से बहुत कम है। ब्रिक्स देशों में हमारी स्थिति सबसे निचले पायदान पर है। यही नहीं, हमारे पड़ोसी और एक मुसलिम बहुल देश के रूप में बांग्लादेश ने 57.4 फीसद के साथ उच्च स्तरीय प्रदर्शन किया है। नेपाल ने लगभग 80 फीसद भागीदारी के साथ इस सूची में चोटी का स्तर प्राप्त किया है। हम सिर्फ एक बात पर संतोष कर सकते हैं कि हमने पाकिस्तान को पीछे छोड़ा है, लेकिन 24.6 फीसद के आंकड़े के साथ वह भी हमसे बहुत पीछे नहीं है।
अगर लैंगिक असमानता के कारणों पर नजर डालें तो पता चलता है कि पैदा होने के साथ ही बच्चियों को इससे दो-चार होना पड़ता है, जब उन्हें पढ़ने के समान अवसर मुहैया नहीं कराए जाते। साथ ही घर से लेकर स्कूल तक में भी भेदभाव झेलना पड़ता है। समाज का रवैया महिलाओं के प्रति उदासीन और भेदभाव से भरा रहा है, जिसकी वजह से महिलाओं का कार्यक्षेत्र सिमटता चला गया है। जिन क्षेत्रों में नौकरियां कम होती हैं, वे आमतौर पर पुरुषों के हिस्से में चली जाती हैं और महिलाओं को कृषि या दिहाड़ी मजदूरी के क्षेत्र तक ही सीमित होकर रहना पड़ जाता है। औद्योगिक और सेवा क्षेत्र में उनकी भागीदारी 20 फीसद से भी कम पर सिमट कर रह गई है।
ज्यादातर क्षेत्रों में बेशक उनकी उपस्थिति कम है, मगर आज महिलाओं की योग्यता पर कोई भी प्रश्न नहीं उठा सकता है। विश्व बैंक की मानें तो महिलाओं की भागीदारी बढ़ा कर हम एक प्रतिशत तक जीडीपी में बढ़ोतरी कर सकते हैं। जहां भी महिलाओं को अवसर मिला है, उन्होंने अपना लोहा मनवाया है, चाहे वह खेल हो या शिक्षा। इसके अलावा, महिलाओं की उपस्थिति बढ़ा कर उनकी जिंदगी में सकारात्मक परिवर्तन लाए जा सकते हैं। जरूरत है केवल समाज को अपना दृष्टिकोण बदलने की और सरकार को महिलाओं के लिए उपयुक्त योजना बना कर अवसरों में वृद्धि और कार्यस्थल पर होने वाले भेदभाव को खत्म करने के लिए एक सजग प्रयास करने की, ताकि वे सहज और सुरक्षित रह कर कार्य कर सकें।
’सिराज अहमद, धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश