दिल्ली से आई एक डरावनी खबर में बताया गया कि जहां-तहां थूकने से मना करना किस हद तक जानलेवा हो सकता है। हम ये मानें या नहीं, लेकिन बेवजह भी जहां-तहां थूकते रहना हमारे देश में लोगों की आम आदतों की एक कड़वी सच्चाई है।
तम्बाकू, गुटखा और पान मसालों के चलन ने इस परंपरा को खूब बढ़ावा दिया। कोरोना के बढ़ते प्रभाव के मद्देनजर गृह मंत्रालय द्वारा आपदा प्रबंधन कानून में बदलाव कर सार्वजानिक स्थलों पर थूकना दंडनीय अपराध घोषित कर दिया गया। लेकिन सरकारी निदेर्शों के बावजूद कानून का उल्लंघन करने में लोगों को कोई झिझक नहीं होती।
बतौर देश के जिम्मेदार नागरिक इस बुराई के खिलाफ लोगों को जागृत करना हम सब का फर्ज है। मगर अफसोस है कि इस ओर न तो कोई पहल करना चाहता है, न ही सरकार की इच्छाशक्ति दिखाई देती है। विवादों की वजह कुछ भी हो, मगर थूकने पर अहं टकराए तो रक्तरंजित समाज का चेहरा सामने आता है।
महज कानून की सख्ती सामाजिक बुराई को दूर करने के लिए नाकाफी है, लिहाजा समाज के हर व्यक्ति को इससे बचने की जिम्मेदारी लेनी होगी।
’एमके मिश्रा, रातू, रांची
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