एक रेडियो जॉकी के रूप में कभी-कभी बहुत दिलचस्प अनुभव होते हैं। आकाशवाणी के हैदराबाद रेनबो चैनल पर ‘दिल की बात’ नाम से बहुत आत्मीय-सा कार्यक्रम होता है। किसी एक विषय पर श्रोताओं से बातचीत करते हुए फिल्मी गाने सुनाए जाते हैं। एक बुधवार को मैंने ‘हम और हमारे पड़ोसी’ जैसा आम विषय रखा था। मुझे बहुत आश्चर्य हुआ जब लोगों ने अपने वर्तमान पड़ोसियों के प्रति विशेष संतोष और आत्मीयता नहीं दिखाई। हालांकि वे बरसों पहले रहे अपने पड़ोसियों से मधुर संबंधों का जिक्र जरूर करते रहे। बहुत से श्रोताओं को दुख था कि अब पड़ोसी एक-दूसरे को जानते तक नहीं, मदद करना तो दूर की बात है।
पड़ोसी जैसे प्यारे रिश्ते में आई इस कमी के बाबत ज्यादातर लोगों का मानना था कि इसकी वजह सुविधाओं में वृद्धि और पर्याप्त धन की उपलब्धता है। हालांकि ये दोनों बातें किसी भी व्यक्ति के लिए सकारात्मक हैं मगर संबंधों के संदर्भ में ‘पड़ोसी’ जैसे रिश्ते का बलि चढ़ जाना गवारा नहीं हो सकता। आज ‘ऑनलाइन’ सुविधाओं से हर चीज घर बैठे प्राप्त हो जाती है तब भला पड़ोसियों की क्या जरूरत! मगर ऐसा नहीं है। सुख-दुख के रिश्ते सबसे पहले हमारा पड़ोसी ही निभा सकता है। हम किसी के पड़ोसी होते हैं तो कोई और भी हमारा पड़ोसी होता है।
बहरहाल, एक दिलचस्प वार्तालाप यह रहा कि जब मैंने एक श्रोता से अपने सवाल के बारे में बोलने को कहा तो उसने कहा, ‘मैडम हम जंगल में रहते हैं। हमारे तो पासवाले खेत का मालिक ही हमारा पड़ोसी है। हमारे खेत में बोरिंग नहीं है तो हम पड़ोसी से पानी लेते हैं। वह मना नहीं करता। लेकिन सब्जी की दिक्कत है तो बगल वाले खेत से सब्जियां चुरा लाते हैं। एक दिन उसने देख लिया तो खूब झगड़ा हुआ। रात को हमने सोचा कि हमसे पाप हो गया है। हमने जाकर उससे माफी मांग ली। वह भी हमारे आम चुरा लेता है। कोई बात नहीं! पर अब हम चोरी नहीं करेंगे मैडम, सच्ची!’ फिर उन्होंने एक शेर सुनाने की इजाजत मांगी। मैंने इजाजत दी तो उन्होंने बहुत खूबसूरत पंक्तियां सुनार्इं। खेतों के बीच रहने वाले श्रोता की इस बेबाक बात और पड़ोसियों के इस रोचक अनुभव पर मैं खिलखिला पड़ी।
लेकिन यह बात तो सही है कि मैं अपेक्षा कर रही थी कि बहुत सारे श्रोता अपने पड़ोसियों की भरपूर प्रशंसा करेंगे और उनके सहयोग के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करेंगे पर अफसोस, ऐसा नहीं हुआ। मुझे दुख भी हुआ है। एक सवाल खड़ा है मेरे सामने। क्या सचमुच समृद्धि और प्रगति मानवीय रिश्तों का अवमूल्यन कर जाती हैं!
एकता कानूनगो बक्षी, रेन ट्री पार्क, हैदराबाद
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