दिल्ली के निर्भया कांड के बाद हुए देशव्यापी आंदोलन के कारण लगा था कि अब बलात्कार की घटनाएं पूरी तरह से कम हो जाएंगी। लेकिन उसके बाद से ठीक उलटा परिणाम देखने में आ रहा है। इतना ही नहीं, तब से कई क्रूरतम घटनाएं भी घटी हैं। अब बलात्कारी सबूत मिटाने के लिए लड़कियों की हत्या तक कर रहे हैं।
मनचलों और मनबढ़ों का मनोबल दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। कारण, सबूत मिटाने की वजह सेवे सोचते हैं कि शायद सजा न मिले। अगर सजा हुई भी तो उसे काट कर वापस आ जाएंगे। हमारा देश चूंकि लोकतांत्रिक है और यहां बहुत से लोग फांसी की सजा के खिलाफ भी होंगे और होना भी चाहिए। लेकिन उनका क्या होगा जिन्होंने किसी निर्दोष की हत्या की है? आखिर हत्या तो हत्या है चाहे जिस तरीके से की गई हो। लिहाजा, अब समय आ गया है कि बलात्कारियों को मृत्युदंड मिलना ही चाहिए।
समाज में संवेदनहीनता दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। आधुनिक प्रौद्योगिकी के कारण जहां बहुत-सी सुख-सुविधाएं हमें उपलब्ध हुई हैं वहीं संवेदनशीलता क्रमश: खत्म होती जा रही है। मेरठ की घटना इसका जीता-जागता उदाहरण है। सेना का एक बहादुर जवान दस-बारह लोगों से लोहा लेता रहा और लोग तमाशा देखते रहे!
इनमें से यदि कोई केवल कह भर देता कि मारो, और घरों के अंदर से ही दौड़ लगा देते तो मनचलों में इतना दम नहीं था कि किसी मुहल्ले में टिक पाते। कम से कम 100 नंबर तो घुमा ही सकते थे। फिर काहे की टेक्नोलॉजी! बलात्कार की सजा अगर फांसी न हुई तो लड़कियां, महिलाएं और उन्हें बचाने वाले लोग ऐसे ही मारे जाते रहेंगे। खोखले नारों से बेटियां सुरक्षित नहीं रहेंगी। इसके लिए तो इतनी क्रूरतम सजा हो ताकि भविष्य में बलात्कारी इस दिशा में सोचने की हिम्मत न कर सकें।
राजेंद्र प्रसाद बारी, इंदिरा नगर, लखनऊ
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