यों तो देश में खाद्य पदार्थों में मिलावट बारहमासी मुद्दा है, लेकिन इसका हो-हल्ला प्राय: तीज-त्योहारों पर दूध और दूध से बनी मिठाइयों को लेकर अधिक होता आया है। मगर अब एक ऐसे ब्रांड में नुकसानदेह पदार्थ पाए गए हैं, जिसका ताल्लुक सीधा बच्चों से है। मैगी का प्रचार चर्चित चेहरों ने लुभावने अंदाज में कुछ इस तरह किया कि यह घर-घर में नाश्ते का अभिन्न हिस्सा बन गया था। अब इसमें अपमिश्रण के खुलासे के बाद सरकार हरकत में आई और इसकी बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
पर सवाल प्रतिबंध से आगे का है कि इतने वर्षों से धड़ल्ले से बिक रही मैगी को लेकर सरकारें और खाद्य गुणवत्ता नियंत्रक एजेंसियां क्या सो रहीं थी? या सब रामभरोसे चल रहा था? बहरहाल, अब बात निकली है तो दूर तलक तो जाएगी ही। इसलिए नाश्ते के अन्य व्यंजन मैक्रोनी और पास्ता भी जांच की जद में हैं और होने भी चाहिए। सीसे की मात्रा सिर्फ मैगी में नहीं बल्कि घरों में प्रयुक्त होने वाले रंग-रोगन, टमाटर, बैंगन और बींस में भी मौजूद है। लेकिन भारत में खाद्य पदार्थों को लेकर मिलावट या गुणवत्ताहीन होने का यह कोई पहला वाकया नहीं है।
पहले भी ऐसे मामले सामने आते रहे पर कुछ अरसा बीत जाने के बाद फिर वही ढर्रा अख्तियार कर लिया जाता है। गौरतलब है कि नब्बे के दशक में ‘धारा’ नाम के खाद्य तेल में मिलावट से ड्राप्सी नामक बीमारी फैली थी जिसके चलते धारा पर प्रतिबंध लगाया गया था, लेकिन अब वह फिर से बाजार में उपलब्ध है। आज भी खुला मिलने वाले 64 फीसद तेलों में मिलावट है। 28 फीसद अंडे ईकोलाई से दूषित हैं तो दही, अनाज और फलों को पकाने में कार्बाइड नामक जहर का असर बना रहता है। बाजार में बिकने वाली और समारोहों-पार्टियों में परोसी जाने वाली आइसक्रीम में भी मिलावट के मामले जब-तब सामने आते रहते हैं, पर यहां ‘सब चलता है’ के नाम यह खेल जारी है।
लोकतंत्र में सरकार का दायित्व है कि वह जनस्वास्थ्य का खयाल रखे और इसके लिए बेहतर होगा कि नागरिकों के दवाओं और अस्पताल पहुंचने की नौबत ही न आए, ऐसे बंदोबस्त करे। इसके लिए पहले तो अतिरंजित और भ्रामक प्रचार वाले विज्ञापनों पर नकेल कसी जानी चाहिए ताकि कंपनियां आम आदमी को बरगला न सकें। दूसरी ओर विज्ञापनों में जो हवा-हवाई दावे किए जा रहे हैं, उनका परीक्षण कर हकीकत अवाम को बताई जानी चाहिए।
यह तथ्य चकित करता है कि नेस्ले कंपनी ने अपने उत्पादों के लिए विज्ञापन पर बीते साल में 445 करोड़ रुपए खर्च किए तो उत्पाद की गुणवत्ता पर महज 19 करोड़। व्यापार में लाभ कमाना इसका अहम हिस्सा है मगर, जब लाभ उपभोक्ता की जिंदगी से खिलवाड़ की आड़ कमाया जाए तो अफसोसनाक है और दंडनीय भी।
श्रीश पांडेय, प्रभात विहार, सतना
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