जिस तत्परता के साथ केंद्र और राज्य सरकारों ने मैगी पर प्रतिबंध लगाया है क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि उतनी ही तत्परता सिगरेट, तंबाकू और शराब को प्रतिबंधित करने में भी दिखाई जाएगी?
अभी बहस इस बात पर चल रही है कि सिगरेट के पैकेट के अस्सी फीसद भाग पर चेतावनी छपी जाए या पचासी फीसद भाग पर। यदि महज चेतावनी पढ़ कर लोग नशा करना छोड़ देते तो भारत कब का नशा मुक्त राष्ट्र बन चुका होता। अगर वास्तव में सरकार की मंशा लोगों के स्वास्थ्य को लेकर इतनी ही नेक होती तो बजाय चेतावनी के इन नशीले पदार्थों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाती।
दरअसल, इनसे प्राप्त होने वाला मोटा राजस्व ही सरकार को कड़े कदम उठाने से रोकता है। पर इन व्यसनों से होने वाली बीमारियों के इलाज पर जो बेहिसाब खर्चा होता है क्या उसका कोई हिसाब है? और फिर अस्वस्थ मानव संसाधनों का निर्माण कर हम किस प्रकार आर्थिक महाशक्ति बनने का दावा कर सकते हैं? शायद सरकार यह मानती है कि सिगरेट और शराब मैगी से कम खतरनाक हैं।
अनिल हासाणी, द्वारका, नई दिल्ली</strong>
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