सत्ता जिसके भी हाथ लगती है, अपने चहेतों को रेवड़ियां बांटने का माध्यम बन जाती है। कितनी ही अंगुलियां उठती रहें, सार्वजनिक संपदाओं की बंदरबांट बदस्तूर चलती रहती है। 2-जी स्पेक्ट्रम आबंटन का मामला हो या कोल ब्लॉक के आबंटित खनन पट्टे। कोल ब्लॉक आबंटन में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक को समन जारी होने के समाचार हमारे बीच हैं।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द किए गए दो सौ चौदह कोल ब्लॉक में अब तक हुई सिर्फ बत्तीस की नीलामी से ही दो लाख करोड़ रुपए के अलावा स्पेक्ट्रम से करीब एक लाख करोड़ रुपए अतिरिक्त तौर पर सरकारी राजस्व में आने के समाचार हैं। निश्चित ही इन दोनों मदों में नीलामी से आने वाली कुल राशि कैग के अनुमान से भी बहुत ज्यादा होगी। लेकिन सार्वजनिक संपदा की बंदरबांट की प्रवृत्ति से सबक लेता कोई दिखाई नहीं देता।
अलग तरह की राजनीति का दंभ भरने वाली आम आदमी पार्टी ने दो दर्जन संसदीय सचिव बना कर पदों की रेवड़ियां बांट दी है। सड़सठ विधायकों में से मंत्री पद सीमित है। छोटा-सा राज्य और मंत्रिमंडल से दुगने संसदीय सचिवों की क्या तुक है? क्या यही अलग तरह की राजनीति है!
जिस जोरदार ढंग से मंच पर खड़े होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘न खाऊंगा और न खाने दंूगा’ की बात करते हैं, वह उनके और उनकी पार्टी की सरकारों की कार्य-प्रणाली में कहीं नजर नहीं आती दिख रही है। मध्यप्रदेश में व्यापमं के दाग छिपाए नहीं छिप रहे।
राजस्थान में चार बड़ी सीमेंट कंपनियों को नई खनन नीति का मसौदा जारी होने से बारह दिन पहले किए गए खनन आबंटन मामले में छह सौ करोड़ रुपए का घाटा सरकारी राजस्व में होने की घटना सामने आना क्या दर्शाता है! बड़े पैमाने पर जमीन कब्जे में लेने और छोड़ने, नक्शे पास करने और रद्द करने के बीच ‘धंधा’ काफी जोरों पर है। अदानी समूह की आस्ट्रेलिया में कोयला खान के लिए एसबीआइ से ऋण प्रस्ताव को स्वीकृत करवाने की कोशिशों के बारे में अब सभी जानते हैं।
नई खनन नीति में नीलामी के जरिए ही खनन पट्टे आबंटन के प्रावधान हैं। शीर्ष अदालत के फैसले की रोशनी में नई खनन नीति में केंद्र सरकार ने नीलामी के प्रावधान करने को लेकर नवबंर में ही मसौदा जारी कर दिया था।
देश में लाखों करोड़ रुपए के कोल ब्लॉक आबंटन घोटाले को देखते हुए केंद्र सरकार ने प्रमुख धातुओं और पदार्थों की सभी प्रकार की खानों का आबंटन नीलामी के जरिए करने की नीति तय की थी। हाल ही लोकसभा में इस मसले पर विधेयक भी पारित हुआ है। वाम दलों को इसमें एक बड़ी खामी नजर आई है। अब देखना यह है कि भूमि अधिग्रहण के खिलाफ चौदह दलों की बनी एकता किसानों के हितों को कितने दिन बचा पाएगी या फिर यह भी स्वार्थ और दबाव में बीमा बिल को लेकर कांग्रेस के समर्पण की तरह बिखर जाएगी!
रामचंद्र शर्मा तरूछाया नगर, जयपुर
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