न्याय का तकाजा
देश की सम्मानित न्यायपालिका के विभिन्न स्तरों और शाखाओं द्वारा पारित आदेश अथवा जारी किए गए दिशा-निर्देश संबंधित व्यक्ति या व्यक्तियों अथवा संस्थाओं द्वारा नहीं माने जाने संबंधी समाचार आए दिन सुर्खियों में छाये रहते हैं। अदालतों के आदेशों की नाफरमानी करने में सरकारी एजेंसियां सबसे आगे देखी जाती हैं। 2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार उस साल अकेले राजस्थान में सरकारी एजेंसियों के विरुद्ध अदालत की अवमानना के 3951 मामले न्यायालय तक पहुंचे थे। सरकारी विभागों के विरुद्ध इतनी भारी संख्या में अवमानना के मामले बनने के प्रमुख कारणों में संबंधित विभाग के कर्मियों का अज्ञान, अक्षमता, कार्यपालन के प्रति इच्छाशक्ति व जवाबदेही का अभाव, दूसरे विभागों से समन्वय की कमी शामिल हैं।
सरकारी लापरवाही का खमियाजा याचिकाकर्ता सहित सभी हित धारकों को भुगतना पड़ता है और साथ ही जनता के बीच न्यायपालिका की छवि भी धूमिल होती है। व्यापक जनहित से संबंधित कई मामलों को लेकर न्यायप्रणाली की तमाम कथित जटिलताओं को दरकिनार करते हुए जब कोई व्यक्ति हिम्मत करके जनहित याचिका दायर करता है तब लोगों के बीच एक उम्मीद बंधती है और न्यायपालिका के सकारात्मक फैसलों से वह उम्मीद विश्वास में बदल जाती है। लेकिन जब ऐसे फैसले धरातल पर क्रियान्वित होते नहीं दिखते तब आमजन के बीच एक अविश्वास का वातावरण बनता है जो कि बेहद चिंताजनक व दुखद है। इसके ढेरों उदाहरण देखने मिल जाएंगे, जैसे राजमार्गों में अमानक गति अवरोधकों को हटाए जाने का मामला, पर्यावरण संबंधी निर्देश। अवमानना के ऐसे ही मामले निजी प्रकरणों के फैसलों में भी देखे जाते हैं जिसमें बाहुबली अदालत को ठेंगा दिखाते पाए जाते हैं।
आज के दौर में जनहित का विषय हो या निजी विवाद, प्रार्थी सामाजिक-आर्थिक बाधाओं से जूझते हुए बड़ी मुश्किल से न्यायालय की चौखट पर गुहार लगाने पहुंच पाता है। उसके बाद भी उसके पक्ष में आए फैसले का क्रियान्वित न होना याचक को झकझोर कर रख देता है। उसे दुबारा अवमानना के मामले को लेकर न्यायालय में जाने के लिए विवश होना पड़ता है। कई दफा याचिकाकर्ता दुबारा न्यायालय पहुंचने की स्थिति में ही नहीं होता। अवमानना के मामले कई रूपों में पुन: न्यायालय पहुंचने से न्यायपालिका पर कार्य का बोझ अनावश्यक रूप से बढ़ जाता है। न्यायपालिका के विभिन्न स्तरों पर पहले से ही ढाई करोड़ से अधिक मामले न्याय की बाट जोह रहे हैं। इन हालात को और बिगड़ने से रोकने के लिए कार्यपालिका में आवश्यक सुधार करने होंगे। रिक्तियों को भरते हुए कर्मियों और अधिकारियों के क्षमता विकास पर ध्यान देने, न्यायप्रणाली की छवि धूमिल होने से बचाने के प्रयास करने होंगे ताकि लोगों में व्यवस्था पर विश्वास बना रहे।
ऋषभ देव पांडेय, जशपुर, छत्तीसगढ़