शांतिनिकेतन/ विश्वभारती विश्वविद्यालय में अपने आठ-दस दिनों के हाल ही के प्रवास के दौरान कई सुखद और स्मरणीय अनुभव हुए। एक अनुभव साझा कर रहा हूं: सूर्योदय यहां जल्दी होता है और इसी के साथ सुबह की चाय लेने की तलब भी शुरू हो जाती है। गेस्ट हाउस का किचन साढ़े सात बजे से पहले खुलता नहीं है इसलिए चाय साढ़े सात बजे के बाद ही मिलती है। हम कुछेक चाय पिपासुओं ने शांतिनिकेतन के परिसर में ही गेस्ट हाउस से लगभग एकाध किलोमीटर की दूरी पर सड़क किनारे लगी चाय की एक खोखानुमा दूकान ढूंढ़ निकाली। सैर की सैर और चाय की चाय। चाय का छोटा-सा गिलास चार रुपए में। एक दिन चाय वाला मूड में था। मैंने बात चलाई: तुम्हारा नाम क्या है? वह बंगाली लहजे में बोला: ‘कांग्रेस’।

मुझे लगा कि शायद मैंने कुछ गलत सुना। दुबारा पूछने पर उसने फिर अपना नाम कांग्रेस ही बताया और साथ में स्पष्ट किया कि उसका जन्म चूंकि आजादी के दिन हुआ था और देश को यह आजादी कांग्रेस ने दिलवाई थी लिहाजा, घरवालों ने उसका नाम कांग्रेस ही रख दिया।

राजनीतिक हस्तियों के नाम पर लोगों के नामकरण तो सुने हैं मगर राजनीतिक पार्टियों पर नामकरण का यह पहला उदाहरण सुनने को मिला। क्या भाजपा, माकपा, जदयू आदि नाम भी किसी मां-बाप ने अपनी संतान के रखे होंगे, यह जिज्ञासा का विषय है।
शिबन कृष्ण रैणा, अलवर

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