बीबीसी की एक खबर के अनुसार ब्रिटेन में तीन जजों को अश्लील सामग्री (पोर्न) देखने के आरोप में नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया है, जबकि चौथे जज ने जांच शुरू होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया है। इनमें जिला जज, आव्रजन जज, उप जिला जज स्तर के कनिष्ठ न्यायिक अधिकारी शामिल हैं जो आपसे में एक-दूसरे से जुड़े हुए नहीं थे। न्यायिक व्यवहार निगरानी विभाग के प्रवक्ता के अनुसार इन जजों ने पोर्न सामग्री देखने के लिए अपने आधिकारिक इंटरनेट एकाउंट का उपयोग किया। प्रवक्ता ने यह भी कहा कि जिस तरह की सामग्री वे देख रहे थे वह ब्रिटेन में गैरकानूनी नहीं है। कानून मंत्री और लॉर्ड चीफ जस्टिस ने कहा है कि ‘आधिकारिक इंटरनेट एकाउंट का इस तरह दुरुपयोग नहीं किया जा सकता और न्यायिक कार्यालय से जुड़े किसी व्यक्ति के ऐसे व्यवहार को स्वीकार नहीं किया जा सकता।’ बीबीसी के कानून संवाददाता क्लाइव कोलेमन ने इसे ‘एक बहुत गंभीर मसला’ कहा है। इस वाकये से पता चलता है कि ब्रिटेन में विधि का शासन (रूल आॅफ लॉ) यथार्थ में भी है, संविधान की किताबों तक सीमित नहीं है।

हर तरह के भ्रष्टाचार या कदाचार के मामले दुनिया के प्राय: सभी देशों में होते हैं, कहीं बहुत कम तो कहीं बहुत ज्यादा। लेकिन महत्त्वपूर्ण यह है कि वहां विधि द्वारा स्थापित कानून और न्याय व्यवस्था इन मामलों में किस तरह प्रतिक्रिया करती है। भारत में भी अक्सर सरकार के तीनों अंगों में उच्च पदस्थ लोगों के अवांछित, अशोभनीय, यहां तक कि अकल्पनीय आचरण की खबरें आती हैं। लेकिन कानून और न्याय व्यवस्था इतनी त्वरित कार्रवाई नहीं करती। भारत में अंगरेजों के शासनकाल की लाख बुराई करने वाले पुरानी पीढ़ी के लोग भी अक्सर उनकी कानून और न्याय व्यवस्था की तारीफ करते सुने जाते हैं। खास तौर पर जब आजकल की शिथिल कानून और न्याय व्यवस्था से परेशान लोग ऐसी बातें कहते हैं (हालांकि यह भी सच है कि मौजूदा कानून और न्याय व्यवस्था अंगरेजों की ही देन है)। यह भी कहा जाता है कि अंगरेजों के समय में अगर भारतीय प्रशासनिक सेवा का कोई बड़ा अधिकारी भी भ्रष्टाचार में लिप्त पाया जाता तो तुरंत और सख्त कार्रवाई होती थी।

जहां तुरंत कार्रवाई होती हो वहां सार्वजनिक पदों पर बैठे लोग अपने आचरण के प्रति ज्यादा सजग होंगे और उनके मन में कानून और न्याय की बातें अवश्य रहेंगी, चाहे सम्मान हो या डर हो। लेकिन इसके विपरीत जहां ‘बड़े’ लोगों तक कानून के लंबे हाथ नहीं पहुंचते हैं और न्यायपालिका कछुआ चाल चलती है, वहां उच्च पदस्थ अधिकारी निडर होकर गलत आचरण करते हैं। भारत में पहले से ही बहुत सारे कानून हैं। यहां जब कभी कोई बड़ा, समाज की चेतना को झकझोर देने वाला अपराध होता है, और नए कानून बनाने या मौजूदा कानूनों को बदलने की मांग उठती है तो सरकारें भी जनता को खुश करने के इरादे से ऐसा ही करने या कम से कम ऐसा करते दिखने का प्रयास करती हैं। लेकिन कानून का सम्मान करने की भावना हर उस व्यक्ति में नहीं दिखती जो असरदार है ओर इसे नाते ‘कानून को तोड़ने का लाइसेंसधारी’ है।

इतना ही नहीं, पुलिस और न्यायपालिका में कानून का पालन कराने और त्वरित न्याय प्रदान करने की दृढ़ इच्छा शक्ति दूर-दूर तक नहीं नजर आती। हमारी बड़ी चिंता समाज और सरकार को साफ-सुथरा बनाने के बदले यह दिखती है कि देश की छवि देश के बाहर किसी भी दशा में खराब नहीं हो और इसके लिए चाहे किसी भी हद तक जाना पड़े, हम जाएंगे।
कमल कुमार जोशी, अल्मोड़ा

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