आलोचना, कटाक्ष, टीका-टिप्पणी किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र की विशेषता होती हैं। लेकिन एक सभ्य, शिक्षित और सामान्य समझ रखने वाले व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है कि स्वस्थ आलोचना और टिप्पणियों को प्रोत्साहन दे।

लिहाजा, आजम खां और ममता बनर्जी जैसे सार्वजनिक जीवन में कार्यरत लोगों को भी जनमानस की प्रतिक्रिया के प्रति परिपक्वता दिखानी चाहिए। अब हमें यह निर्णय करना है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करें या अपनी अमर्यादित टिप्पणी से मूल अधिकारों का अर्थहीन दुरुपयोग! हमें नहीं भूलना चाहिए कि अधिकारों के साथ कर्तव्य भी जुड़े होते हैं। यदि हम अधिकारों का प्रयोग करेंगे तो जरूरी है कि अपने कर्तव्यों के प्रति भी ईमानदार रहें।
सत्य देव आर्य, मेरठ

 

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