प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थ लोगों से रसोई गैस सब्सिडी छोड़ने की अपील करना ऊपरी तौर पर तो सराहनीय लगता है पर उसका व्यापक प्रभाव पड़ने की उम्मीद कम ही है। कारण, जब जनता सांसदों और मंत्रियों को संसद की कैंटीन, आलीशान बंगले, टेलीफोन भत्ते और वीआईपी कोटे की रेलयात्रा आदि में बिना हिचक सरकारी धन का इस्तेमाल करते हुए देखती है तो उससे सब्सिडी छोड़ने की उम्मीद करना व्यर्थ है।
वैसे भी जब जनता प्रत्येक क्षेत्र में ‘माननीयों’ का अनुसरण करती है तो मुफ्तखोरी में भला कैसे पीछे रह सकती है! हमारे नेता अपनी सहूलियत के लिए आयकर दाताओं का पैसा फूंकते हैं तो वे जनता से सब्सिडी छोड़ने का आग्रह करने का नैतिक अधिकार खो देते हैं।
प्रधानमंत्रीजी का जनता को गैस सब्सिडी छोड़ने की नसीहत देना और स्वयं संसद की कैंटीन में शाही खाना खाकर केवल उनतीस रुपए का बिल भर कर चलते बनना अपने आप में विरोधाभासी है। उच्च संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्ति अपनी कथनी से नहीं बल्कि करनी से ही जनमानस को सब्सिडी छोड़ने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
अनिल हासाणी, द्वारका, नई दिल्ली
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