तमाम औद्योगिक विकास के बावजूद आज भी भारत एक कृषि प्रधान देश है। हमारे यहां जय जवान-जय किसान का नारा खूब लगाया जाता है। चुनाव के वक्त किसानों को लुभाने का हर संभव प्रयास किया जाता है क्योंकि नेताओं को यह वर्ग वोट बैंक दिखता है। हैरत की बात है कि किसानों को लेकर कई तरह की योजनाएं चलाई जा रही हैं लेकिन फिर भी उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है। भारत में आवश्यक खाद्यान की पूर्ति कृषि के माध्यम से ही की जाती है। देश की बावन फीसद आबादी प्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है और भारतीय कृषि मानसून पर निर्भर है। इसी कारण यहां कृषि को ‘मानसून का जुआ’ कहा जाता है। अन्नदाताओं की भागीदारी देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर सीधा असर डालती है। लेकिन देश को इतना बड़ा योगदान देने वाले किसानों की स्थिति दयनीय होती जा रही है।

इस गंभीर मुद्दे पर मंथन के बजाय राजनीति की रोटी सेकी जा रही है। आज देश के हर प्रदेश में किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं। 1990 के बाद स्थिति और ज्यादा विकट होती गई है। एक आकड़े के मुताबिक प्रतिवर्ष दस हजार से अधिक किसानों के आत्महत्या करने की रपटें दर्ज हैं। 1995 से 2011 के बीच 7,50,760 किसानों ने आत्महत्या की है। आत्महत्या की दृष्टि से 2009 सबसे दर्दनाक वर्ष रहा है। राष्ट्रीय अपराध लेखा कार्यालय ने इस वर्ष सर्वाधिक 17,368 मामले दर्ज किए जबकि मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक 17 हजार 638 मामले दर्ज हैं। सबसे ज्यादा आत्महत्याएं महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में हुर्इं। इन पांच राज्यों में दस हजार सात सौ पैंसठ किसानों के आत्महत्या करने का मामला प्रकाश में आया था। यदि गौर करें तो हर तीस मिनट में एक किसान ने मौत को अपने गले लगाया।

इस वर्ष मार्च-अप्रैल में हुई बारिश और ओलावृष्टि के कारण किसानों की आत्महत्याओं का दौर चल रहा है। एसोचैम की रिपोर्ट के मुताबिक एक करोड़ छह लाख हेक्टेयर की फसलें बर्बाद हुई हैं। इस बारिश का असर चौदह राज्यों पर पड़ा है। यदि अकेले उत्तर प्रदेश की बात करें तो अब तक सैकड़ों किसान आत्महत्या कर चुके हैं। राज्य सरकार ने देर से ही सही, मुआवजे का ऐलान कर दिया है लेकिन जिला स्तर पर अब तक किसानों को कोई मदद नहीं मिल रही है बल्कि केवल बयानबाजी चल रही है। इन सब आकड़ों पर गौर करने के बाद राज्य और केंद्र सरकारों को किसानों की आत्महत्याएं रोकने के लिए उचित कदम उठाने चाहिए।

कृषि विशेषज्ञों से बर्बाद फसलों का सर्वे करा कर किसानों के कर्ज माफ किए जाने चाहिए। साहूकारों के चंगुल से किसानों को मुक्त कराना चाहिए, बर्बाद फसलों के लिए उचित धनराशि मिलनी चाहिए, बिजली बिल माफ किए जाने चाहिए, सस्ती दरों पर खाद, बीज उपलब्ध कराए जाने चाहिए। ऐसा होने के साथ-साथ सरकारों का कोई नुमाइंदा किसानों के लगातार संपर्क में रहे ताकि किसानों को विश्वास हो सके कि सरकारें उनके लिए चिंतित हैं।

अवनिंद्र कुमार सिंह, दुर्गाकुंड, वाराणसी

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