संपादकीय ‘विलय की राह’ (17 अप्रैल) पढ़ा। जनता-परिवार की राह और रचना के संदर्भ में हमारा कहना है कि जन हित, समाज हित, देश हित में जो भी हो सके, वह शुभ सूचक है। सामाजिक न्याय की शक्तियों को पूरे मन-मिजाज से एकजुट होना चाहिए। लेकिन उन्हें मोदी की नहीं बल्कि जनता की परवाह करनी चाहिए। स्वार्थ-सुविधा और धर्मनिरपेक्षता की इकतरफा डोज और निजी -पारिवारिक हित साधने से भी बचना चाहिए।
बीते दशकों में 1977 से अब तक के इतिहास को देखें तो इंदिरा गांधी, राजीव गांधी या अब मोदी के कारण नहीं जनता पार्टी, जनता दल, सपा, जनता दल (एकी) केवल नेताओं के निजी अहं और स्वार्थों के कारण बिखरे-टूटे हैं।
राजनीति किस हद तक पहुंच जाती है इसके अब कोई मायने नहीं रहे हैं। बात हम उस राजनीति की करने जा रहे हैं जो एक नया मोड़ लेने जा रही है। चंद्रशेखर जयंती के अवसर पर छह दलों ने मिलकर एक ‘जनता परिवार’ की घोषणा की है। इस नवगठित जनता परिवार का अध्यक्ष सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को चुना गया है और चुनाव चिह्न साइकिल के नाम पर मुहर लगी है! इससे जाहिर हो रहा है कि समाजवादी पार्टी की ताकत और अहमियत को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसे लेकर कुछ नेताओं में असंतोष की भी खबरें आ रही हैं। रामविलास पासवान भी तो उसी जनता परिवार का अंग रहे हैं। उनकी सुन लीजिए, ‘दिल तो मिलते नहीं, दल का विलय कर लिया है।’
बिहार और उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनावों में मोदी लहर को रोकने के लिए इस दल का गठन किया गया है। इस बात की पुष्टि मुलायम सिंह यादव पहले ही कर चुके हैं। यादव का कहना है कि लड़ाई भाजपा और सपा के बीच है। मोदी सरकार की मनमानी रोकने के लिए अलग-अलग बैठने से काम नहीं चलेगा। पर सवाल है कि लालू और नीतीश सत्रह साल तक अलग क्यों रहे? क्या मोदी ने उनसे कहा था? और जिन चंद्रशेखर की जयंती पर समाजवादी राजनीति को नए सिरे से खड़ा करने का प्रयास किया गया क्या जनता को नहीं मालूम कि जीतेजी चंद्रशेखर की सजपा से मुलायम सिंह ने अपने को अलग क्यों कर लिया था?
लोकतंत्र में मोदी फोबिया से नहीं चलेगा। जनता की परवाह करेंगे तभी लोग आप पर भरोसा करेंगे। जनता-परिवार की सबसे बड़ी कमजोरी है विश्वसनीयता के मोर्चे पर कमजोर पड़ना।
राजकुमार नागर, मडैयाफतेहपुर, बुलंदशहर
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