लंबे समय तक सख्ती के बाद आखिरकार रिजर्व बैंक के रेपो दर में चौथाई फीसद की कटौती करने पर स्वाभाविक ही कारोबारियों ने प्रसन्नता जाहिर की है। नरेंद्र मोदी सरकार का जोर बाजार में चमक पैदा करके विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने पर अधिक है, रेपो दर में कटौती उसकी मंशाओं के अनुरूप ही कही जा सकती है।

मगर सिर्फ बाजार में पैसे का प्रवाह बढ़ा कर अर्थव्यवस्था की सेहत सुधारने का दावा करना कठिन हो सकता है। डॉलर के मुकाबले रुपए और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत पर भी काफी कुछ निर्भर करेगा। इसलिए सिर्फ औद्योगिक क्षेत्र की मंशाओं को ध्यान में रखते हुए या फिर उसके मनोवैज्ञानिक दबाव के चलते बैंक दरों में फेरबदल का सिलसिला आगे बढ़ाना खतरे से खाली नहीं कहा जा सकता।
विनय नौटियाल, नंदनगरी, दिल्ली

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