समय-समय पर गांधीजी का स्मरण कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके प्रति श्रद्धा जताते रहते हैं। आस्ट्रेलिया में गांधी की मूर्ति का अनावरण करने के बाद उन्होंने कहा कि गांधीजी से उन्हें हमेशा प्रेरणा मिलती रही है। स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत भी उन्होंने गांधी जयंती के दिन की। दो अक्तूबर और तीस जनवरी को गांधी की समाधि पर जाकर माथा भी टेकते हैं। गांधीजी के प्रति मोदीजी की श्रद्धा को लेकर किसी के मन में कोई शंका अब नहीं रहनी चाहिए। गुजरात के होने के कारण भी वे गांधी पर दूसरों से कुछ ज्यादा ही अपना हक जमा सकते हैं! इस सबके बावजूद कुछ ‘नासमझ’ उन्हें गांधीवादी नहीं मान पाते।

ऐसे शंकालुओं को समझना चाहिए कि मोदी जब लाखों का सूट पहनते हैं तो गांधी की सादगी में ही भरोसा जाहिर कर रहे होते हैं। क्या वे इससे महंगा सूट नहीं पहन सकते थे! बोलो, चुप क्यों हो? क्या उन्होंने दस-बीस करोड़ का सूट नहीं पहन कर गांधीजी पर अहसान नहीं किया था? जब उनसे पूछा कि गुजरात में मुसलमानों के मारे जाने पर वे कैसा महसूस करते हैं, तो उन्होंने गांधीजी के प्रिय भजन ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए जे पीर पराई जाणे रे’ का आदर करते हुए ही तो कहा था कि कुत्ते का पिल्ला भी गाड़ी के नीचे दब जाता है तो तकलीफ होती ही है!

गांधीजी के हरिजनों के प्रति लगाव से प्रेरणा लेते हुए मोदीजी ने अपनी एक किताब में लिखा है कि जब हरिजन मैला साफ करते हैं तो उन्हें सेवा भाव से एक आध्यात्मिक सुख मिलता है। गांधी के स्वदेशी का सम्मान करते हुए ही तो वे प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी को प्रोत्साहित कर रहे हैं। गांधी के ग्राम स्वराज में अटूट भरोसे के कारण ही तो वे स्मार्ट सिटी बनाएंगे। कुछ मामलों में मोदी गांधीजी से भी आगे निकल गए। अब त्याग का नमूना देखिए। गांधीजी तो कस्तूरबा को नहीं त्याग पाए जबकि त्यागमूर्ति मोदीजी ने जशोदा बेन को त्यागा कि नहीं?
गांधीजी कहते थे कि बुरा मत बोलो, बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो। गांधीजी के विचारों में श्रद्धा के कारण मौके-बेमौके दहाड़ने वाले, बात-बात पर ललकारने वाले नरेंद्र भाई सांप्रदायिक जहर उगलने वाले योगी आदित्यनाथ, साक्षी महाराज, साध्वी निरंजन ज्योति, गिरिराज सिंह, अशोक सिंघल, प्रवीण तोगड़िया सहित अनेक लोगों की बुराई की ओर देख भी नहीं रहे, सुन भी नहीं रहे और संसद में बहुत आग्रह के बाद भी कुछ नहीं बोले।

बराक ओबामा को भला गांधी दर्शन कितना आता है? उठाई जीभ तालू से मार दी! कह दिया कि भारत में सांप्रदायिक असहिष्णुता है; यदि गांधीजी होते तो स्तब्ध रह जाते। बड़े आए गांधी का पाठ पढ़ाने वाले! इस गलतफहमी में मत रहिए जनाब कि आप मोदीजी को गांधी समझा सकते हो!
श्याम बोहरे, बावड़ियाकलां, भोपाल

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