भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के मुताबिक काले धन की वापसी का मुद््दा महज एक आकर्षक चुनावी जुमला था। इससे समझा जा सकता है कि इस मामले में मोदी सरकार से कितनी उम्मीद की जा सकती है। वैसे भी जो सरकार देश के भीतर काले धन के प्रवाह को रोकने और उसके स्रोतों को बंद करने के लिए सक्रिय न हो, वह बाहर जमा काले धन को लेकर हवाई वादे ही कर सकती है।
माना जाता है कि चुनावों में भी काले धन का इस्तेमाल बढ़ता गया है। शायद यही वजह है कि अधिकतर राजनीतिक दल अपने आय-व्यय को आरटीआइ के दायरे में नहीं लाना चाहते। एसआइटी के गठन से कुछ उम्मीद जरूर बनी है। पर उसकी जांच पूरी होने का इंतजार न करसरकार कुछ कदम अविलंब उठा सकती है। उसे विदेश में खाता होने की जानकारी सरकार को देना अनिवार्य कर देना चाहिए। इससे काले धन की पड़ताल करना आसान हो जाएगा।
दूसरे, शेयर बाजार में पी-नोट के जरिए अपनी पहचान छिपा कर निवेश करने की छूट बंद होनी चाहिए। फर्जी कंपनियां बनाना भी काले धन को उधर से इधर करने का एक प्रचलित तरीका है। ऐसे हथकंडों से निपटने के लिए सरकार को किसी अंतरराष्ट्रीय संधि या किसी अन्य देश से सहयोग की जरूरत नहीं है। अगर वह काले धन पर लगाम लगाने के लिए संजीदा है तो ये कदम क्यों नहीं उठाए जाते!
हिमांशु गोस्वामी, बुलंदशहर
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