रूस में चल रहे फीफा विश्व कप के दौरान एक दिलचस्प वाकया पेश आया। प्रतियोगिता में भाग ले रहे क्रोएशिया की राष्ट्राध्यक्ष एक मैच के दौरान अपने देश की टीम की हौसला अफजाई के लिए आम दीर्घा में बैठी देखी गर्इं। काफी देर बाद जानकारी होने पर आयोजक उन्हें विशेष अनुरोध करके अतिविशिष्ट दर्शक दीर्घा में ले गए। बाद में यह बात भी सामने आई कि राष्ट्राध्यक्ष महोदया ने क्रोएशिया से रूस की यात्रा विमान के सबसे निछले दरजे में बैठ कर की थी। इस तरह उन्होंने अतिविशिष्ट व्यक्तियों के लिए शोर शराबे, दिखावे से दूर, सादगी और शालीनता का एक मापदंड स्थापित किया है। क्या हम अपने देश में नेताओं और नौकरशाहों से इस स्तर की सादगी की अपेक्षा कर सकते हैं!

हमारे यहां तो छोटे सरकारी ओहदे या मंत्री पद से लेकर बड़े सरकारी ओहदे या संवैधानिक पद पर आसीन लोग बिना तामझाम के घर से निकलना अपनी तौहीन समझते हैं। यहां छोटे से छोटे पद पर बैठा अधिकारी या नेता जब निजी प्रवास पर निकलता है तो बड़ी शान से निजी वाहन पर भी अपने ओहदे का प्रदर्शन करने से नहीं चूकता। साथ ही वह अपेक्षा करता है कि गंतव्य स्थल पर उसके आगमन की सूचना पहुंच चुकी हो और वहां उसकी उच्चस्तरीय आवभगत की जाए। मंत्रियों के आने से पहले प्रोटोकॉल जारी हो जाते हैं। यातायात भी कथित सुरक्षा के नाम पर रोक दिया जाता है। आधिकारिक विदेश यात्रा पर जाने के लिए विमान के उच्चतम श्रेणी के टिकट से नीचे बात ही नहीं की जाती। आधिकारिक प्रवास के नाम पर सरकारी खर्च पर रिश्तेदारों सहित लंबी-लंबी विदेश यात्राएं व महंगे होटलों में ठहराव के कई उदाहरण सामने आ चुके हैं।

आज देश में सादगी भरा जीवन जीने वाले उच्च पदस्थ व्यक्तियों की संख्या बहुत कम है। इनमें त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री और गोआ व ओडिशा के वर्तमान मुख्यमंत्रियों के नाम प्रमुखता से लिए जा सकते हैं। कुछ नौकरशाह भी हैं जो शालीनता की मिसाल हैं। बड़े पदों पर बैठे लोगों की सुविधा और सुरक्षा सुनिश्चित करना प्राथमिकता में होना चाहिए पर यह आम जनता ही असुविधा और सरकारी कोष के अपव्यय की कीमत पर नहीं। जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों को यह याद दिलाने की जरूरत है कि वे जनता के बीच से ही हैं और जनता के सेवक हैं।
’ऋषभ देव पांडेय, जशपुर, छत्तीसगढ़

जल संरक्षण
बढ़ते प्रदूषण और ग्लोबल-वार्मिंग की वजह से शुद्ध जल की उपलब्धता में निरंतर कमी आ रही है। धरती पर अब महज तीस फीसद जल शुद्ध बचा है। ऐसे में वर्षा जल का संरक्षण करना जरूरी हो गया है। वर्षा के जल को संरक्षित करके उसका उपयोग सिंचाई, पशुओं को पिलाने, कपड़े धोने, नहाने आदि कामों में किया जा सकता है। हमें जल की बर्बादी रोकनी होगी। भूजल स्तर का नीचे चले जाना भी गंभीर चिंता का विषय है जो भविष्य में होने वाले जल संकट और सूखे की ओर इंगित कर रहा है। प्रकृति-प्रदत्त जल का संरक्षण करना आज समय की मांग है। इसकी शुरुआत हम अपने घर से करें तो बेहतर होगा।
’सत्यम भारती, बीएचयू, वाराणसी</strong>