भारत में डिजिटल भुगतान की तरफ लोगों का रुझान बढ़ा है। सरकार ने भी नोटबंदी के बाद नकदी की किल्लत से निजात के लिए डिजिटल भुगतान को प्रोत्साहन देने की बात कही थी लेकिन ऐसे भुगतान में धोखाधड़ी को लेकर ग्राहक चिंता में रहते हैं और जिसे रोकने के लिए कोई ठोस प्रावधान नहीं है। यही कारण है कि डिजिटल भुगतान करने वालों की संख्या में बढ़ोतरी के साथ वित्तीय धोखाधड़ी के मामलों में भी बढ़ोतरी हुई है। वित्तीय मामलों पर रिसर्च करने वाली कंपनी एक्सपेरियन के मुताबिक 24 प्रतिशत भारतीय ऑनलाइन लेन-देन के दौरान धोखाधड़ी के शिकार होते हैं। इनमें 57 फीसद टेलीकॉम, 54 फीसद बैंकिंग, 46 फीसद रिटेल सेक्टर में ऑनलाइन ठगी के शिकार भारतीय होते हैं। यानी कहा जा सकता है कि हर चार में से एक भारतीय ऑनलाइन धोखाधड़ी का शिकार हो रहा है।
डिजिटल माध्यम केवल सहूलियत के लिहाज से महत्त्वपूर्ण नहीं होता बल्कि डाटा की सुरक्षा भी अहम होती है। ऐसे में 50 फीसद भारतीय बैंकों के साथ सहज तरीके से डाटा शेयर कर लेते हैं। वहीं 51 फीसद भारतीय ऑनलाइन सेवाओं के फायदे के लिए डाटा साझा करते हैं जिनमें से महज छह फीसद भारतीय निजी जानकारी पर खुद नजर रखते हैं। यानी डाटा साझा करने को लेकर स्थिति संतोषजनक नहीं है।
आज डिजिटल इंडिया की तरफ तेजी से कदम तो बढ़ाए जा रहे हैं लेकिन डाटा की सुरक्षा को लेकर चुनौती बढ़ी है। साइबर अपराधी नामी गिरामी कंपनियों के इर्द-गिर्द नाम से वेबसाइट बना कर रातों-रात करोड़पति के सपने दिखाकर, नाम, ईमेल, पैन नंबर या आधार नंबर सरीखी निजी जानकारी ले लेते हैं। उसके बाद लोगों की गाढ़ी कमाई पर हाथ साफ करते हैं। छोटे शहरों और कस्बों में बैंक के एटीएम पर गार्ड तक की सुविधा नहीं होती है। ऐसे में ग्राहक के एटीएम कार्ड की जानकारी वे आसानी से हासिल कर लेते हैं। पुलिस थानों में केस दर्ज कर फाइलों का अंबार लगाने से समस्याओं का समाधान नहीं होने वाला है बल्कि डिजिटल धोखाधड़ी के शिकार लोगों के लिए समाधान का रास्ता खोजना होगा क्योंकि दर्ज मामलों में आधे का भी निपटारा नहीं हो पाता है। साइबर अपराध के शिकार लोगों की समस्याओं के हल के लिए पोर्टल बनाया जाए ताकि तुरंत कार्रवाई की जा सके। वहीं जालसाजी को रोकने के लिए संस्थागत ढांचे हो मजबूत करने पर बल देना होगा ताकि डिजिटल भुगतान सुरक्षित बने।
’महेश कुमार, सिद्धमुख, राजस्थान</strong>