झारखंड के गुमला जिले के सिसकारी गांव में हुई चार बुजुर्ग आदिवासियों की हत्या किसी भी पढ़े-लिखे और सभ्य कहे जाने वाले समाज के लिए शर्म की बात है। आज सूचना-तकनीक और ज्ञान-विज्ञान से जुड़ने के बावजूद हम जादू-टोने-टोटके पर जीवन जी रहे हैं, जो किसी भी शिक्षित समाज के लिए चिंता का विषय है। हमारे देश में आज भी ऐसे पिछड़े क्षेत्र हैं जो शिक्षा से दूर होने के साथ सामाजिक कुरीतियों से अभिशप्त हैं। इसका खमियाजा समाज के कमजोर वर्गों को भुगतना पड़ता हैं जैसा कि सिसकारी गांव में घटित हुआ। जादू-टोनों का जन समुदाय में प्रचलित होना इस बात का जीवंत उदाहरण है कि निरंतर विकास के नए प्रतिमान स्थापित करते हुए भी हम वास्तविक शिक्षा से दूर हैं।
स्थितियां कुछ भी हो, ऐसे कृत्य को किसी भी तरह से प्रश्रय नहीं दिया जाना चाहिए और दोषियों को जल्द ही कठोर सजा मिलनी चाहिए। किसी को भी कानून-व्यवस्था अपने हाथ में लेने का हक नहीं। पंचायत के नाम पर कानून-व्यवस्था की धज्जियां उड़ाने वाले आज भी समाज के पिछड़े और कमजोर लोगों पर बर्बरतापूर्वक अत्याचार करते हैं। ऐसे लोगों को नसीहत देना बहुत जरूरी है जिससे आने वाले समय में ऐसा कुकृत्य करने वालों को रोका जा सके। साथ ही, जो विकास की धारा में ज्ञान-विज्ञान और शिक्षा में पीछे छूट गए हैं उन्हें शिक्षित कर मुख्यधारा में शामिल करने की आवश्यकता है। आज भी आदिवासी समुदाय देश की मुख्यधारा से बाहर हैं। इसके लिए सरकार, निजी संस्थाओं और शिक्षितों को आगे आकर व्यापक जन-आंदोलन छेड़ना पड़ेगा जिससे पिछड़े आदिवासी समुदायों चेतना लाई जा सके। संदेह के कारण हो रही हत्याओं में बेगुनाहों को अपनी जान गंवानी पड़ रही है जो देश की कानून-व्यवस्था पर सवालिया निशान है। देश और समाज को पीछे ले जाने वाली एसी घटनाओं को रोकने के लिए यह जरूरी है कि पुलिस जल्द से जल्द अपराधियों को पकड़े और सजा दिलवाए।
’धर्मेंद्र प्रताप सिंह, कासरगोड, केरल
साइबर खतरा
एक तरफ देश में तेजी से बेरोजगारी बढ़ रही है, तो दूसरी तरफ युवाओं की एक बड़ी संख्या साइबर लत का शिकार हो रही है। किशोर और नौजवान आबादी का बड़ा हिस्सा इंटरनेट, स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के जाल में बुरी तरह उलझ कर रह गया है। यह संकट सिर्फ भारत ही नही, बल्कि पूरी दुनिया में तेजी से पैर पसार रहा है। अब तो हालात ऐसे हो गए हैं कि युवाओं में बेरोजगारी सहित देश की वास्तविक समस्याओं के बारे में सोचने-समझने की क्षमता और प्रवृत्ति ही खत्म हो गई है। मशहूर लेखक निकोलस कार ने मन-मस्तिष्क पर इंटरनेट के प्रभाव पर अपनी चर्चित पुस्तक ‘द शैलोज’ में कहा है कि इंटरनेट हमें सनकी बनाता है, हमें तनावग्रस्त करता है, हमें उस ओर ले जाता है जहां हम इस पर ही निर्भर हो जाएं। भारत में बेहद सस्ती दरों पर उपलब्ध डेटा भी नोजवानों को साइबर लत की ओर धकेलने में बड़ी भूमिका निभा रहा है।
’सोनू कुमार सोनी, बेतिया
बेकाबू जुबान
कई बार राजनेता अपनी संयमित वाणी से तो, कई नेता अपनी टीकी-टिप्पणियों से हमेशा चर्चा में रहते हैं। साध्वी प्रज्ञा ने हाल में फिर ऐसी बात कह डाली जिससे विवाद खड़ा हो गया है। ऐसा एक नहीं, कई बार हुआ है। ऐसा करके वे जनता के बीच खुद का ही मखौल ही उड़वा रही हैं। ऐसी बयानबाजी से पार्टी की छवि को भी धक्का लगता है। स्वच्छ भारत सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट है, इसलिए उस पर टिप्पणी करना सरकार का ही उपहास करने जैसा है।
’विभाष जैन, पारा, मप्र