कांग्रेस को यह स्मरण होना चाहिए कि उसके कार्यकाल में अनुच्छेद 370 में कई संशोधन किए गए। अगर यह अस्थायी अनुच्छेद इतना ही महत्त्वपूर्ण और उपयोगी था तो फिर कांग्रेस ने सत्ता में रहते समय उसे स्थायी रूप क्यों नहीं दिया? यह हास्यास्पद है कि कांग्रेस एक ओर तो कश्मीर को भारत का अटूट हिस्सा बताती है और दूसरी ओर उस अनुच्छेद 370 को हटाए जाने का विरोध भी करती है जो अलगाव और भेदभाव का जरिया बन गया था। बेहतर है कि कांग्रेस यह स्पष्ट करे कि उसे कश्मीर के भारत में पूर्ण एकीकरण को लेकर आपत्ति क्यों है? कायदे से तो यह एकीकरण आजादी के बाद ही हो जाना चाहिए था, ठीक वैसे ही जैसे हैदराबाद और जूनागढ़ की रियासतों का हुआ था।
’हेमंत कुमार, गोराडीह (भागलपुर)
कैसा विरोध ?
पिछले दिनों जिन चौंसठ कश्मीरी पंडित भद्रजनों ने अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी किए जाने के विरोध में बयान जारी किया था, उसकी देश के आम नागरिकों के साथ-साथ असंख्य भुक्तभोगी कश्मीरी पंडितों ने एक-स्वर में कड़ी भर्त्सना की थी। यह माना जाने लगा था कि अव्वल तो ये भद्रजन कश्मीर में स्थायी तौर पर कभी रहे नहीं और अगर कभी रहे भी तो विस्थापन की त्रासदी और संकट का दंश इन्होंने कभी झेला नहीं। संभवत: पूर्व सरकारों के ये लोग समर्थक रहे हैं या फिर देश के शत्रुओं के इशारों पर नाच रहे हैं। इन तथाकथित ‘हिमायतियों’ के खिलाफ कश्मीरी पंडित-समाज की प्रतिनिधि संस्थाओं को ज़ोरदार तरीके से एक निंदा प्रस्ताव जारी करना चाहिए।
’शिबन कृष्ण रैना, अलवर
उदासीन सरकार
भारत सरकार जहां एक ओर प्रशासन के कामकाज को आसान बनाने के लिए डिजिटलीकरण, आॅनलाइन निराकरण और ट्वीटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को उपयोग में लाने के लिए अभियान चला रही है, वहीं कई प्रदेशों के शासन में इसकी ओर उदासीनता नजर आती है। मध्यप्रदेश भी इनमें से एक है, जहां कई जिलों के जिलाधिकारी कार्यालय के ट्वीटर अकाउंट बना कर छोड़ दिए गए हैं । पुलिस अकाउंट भी कई महीनों से अपडेट नहीं हुए हैं। टैग किए गए पोस्टों पर तो कभी कोई ध्यान ही नहीं दिया जाता। आॅनलाइन एफआइआर का कोई विकल्प ही मौजूद नहीं है।
ऐसे में हमें यह समझना होगा कि इस बदलते दौर में जहां समूची दुनिया खुद को बदल रही है और तकनीकी का बेहतर उपयोग कर प्रशासन को और मजबूत, सरल और आसानी से पहुंच वाला बना रही है, वहां ऐसी उदासीनता पिछड़ेपन का द्योतक है। प्रशासन को भी यह समझना चाहिए कि तकनीक का उपयोग कर वे स्वयं का समय और मेहनत दोनों बचा सकते हैं और अपनी सेवाएं जनता तक बड़ी आसानी से और प्रभावी ढंग से पहुंचा सकते हैं। इस तरह वे समूची योजनाओं के सच तक अपनी पहुंच और लोक हित सुनिश्चित कर सकते हैं।
’अनिल पटेरिया, छतरपुर (मप्र)