सीमा चौकियों से निरंतर गोलाबारी, घुसपैठ और आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर चलाने जैसी गतिविधियां चलाने के लिए सीधे तौर पर पाकिस्तान सरकार जिम्मेदार है। इसीलिए कहा जा सकता है कि देश का नाम तो पाक है पर हरकतें और इरादे उसके नापाक हैं। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ और सेना के अप्रत्यक्ष सहयोग के बिना भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देना संभव नहीं है। बालाकोट लक्षित हमले के बाद पाकिस्तान सरकार पर भारत और अमेरिका द्वारा बनाए गए दबाव का असर दिखाई दे रहा है। पाकिस्तान अपनी खराब अर्थव्यवस्था के कारण अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से ऋण लेने के लिए हाथ-पांव मार रहा है। आतंकियों के वित्तपोषण के कारण ही अंतरराष्ट्रीय वित्तीय कार्रवाई बल ने पाकिस्तान को निगरानी सूची में डाल रखा है। भारत के कूटनीतिक दबाव के कारण चीन को सुरक्षा परिषद में अजहर मसूद को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करने वाले प्रस्ताव को अपना समर्थन देना पड़ा है। अमेरिका और भारत के बीच बढ़ती नजदीकियां और आतंकवाद पर दोनों देशों के समान विचार होने के कारण पाकिस्तान स्वयं को असुरक्षित महसूस कर रहा है। भारत ने विश्व मंचों पर आतंकवाद के खिलाफ पुरजोर आवाज उठाई है।

पाकिस्तान के कड़े विरोध के बावजूद इस्लामिक सहयोग संगठन द्वारा भारत को अतिथि के रूप में बुलाया जाना और उसकी बैठक में भारत द्वारा आतंकवाद के खिलाफ अपने विचार रखना आदि ने पाकिस्तान को अपने व्यवहार में नरमी लाने के लिए मजबूर कर दिया है। इसीलिए हाल ही में पाक प्रधानमंत्री ने अपनी जमीन आतंकवादियों को प्रशिक्षण के लिए इस्तेमाल किए जाने की बात कबूल की है। हालांकि कश्मीर मुद्दा, सीमापार आतंकवाद और नकली भारतीय मुद्रा का प्रसार जैसी समस्याओं का कोई स्थायी समाधान नहीं निकला है। पाक सेना द्वारा सीमा पर गोलाबारी के कारण हमारे जवान शहीद हो रहे हैं, जो एक अघोषित युद्ध की स्थिति है। इस समस्या के समाधान के लिए हमें पाकिस्तान को विश्व पटल पर घसीटना होगा और उसे अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से अलग-थलग करना होगा, ताकि वह अपनी हरकतों से बाज आए और आतंकवाद के खिलाफ विश्व समुदाय के साथ खड़ा होने के लिए मजबूर हो सके।
’ओम प्रकाश डूडी, जोधपुर</p>

बंधुत्व की ओर
हाल के दिनों में कुछ अराजक तत्त्वों की वजह से बढ़ रहा आपसी वैमनस्य हमारी सामासिक संस्कृति, एकता, अखंडता और बंधुत्व की भावना पर प्रश्नचिह्न लगा रहा है। इस वैमनस्य का मूल कारण मिथ्या सूचनाएं हैं। इनसे धार्मिक पूर्वाग्रह में वृद्धि हो रही है जिससे एक-दूसरे के प्रति अविश्वास बढ़ा रहा है। इसी का अफसोसनाक नतीजा हम मॉब लिंचिंग यानी भीड़ की हिंसा के रूप में देख रहे हैं। इसके मद्देनजर हाल के परिदृश्य में हमें जरूरत है अपनी संस्कृति पर अमल करने की, उस गौरवमय इतिहास को देखने-समझने की जो वसुधैव कुटुंबकम और सर्वधर्म समभाव पर बल देता है। साथ ही आवश्यकता है उन अराजक तत्त्वों को पहचानने और उनसे दूरी बनाने या फिर तार्किक और वैज्ञानिक रूप में उनको जवाब देने व ऐसी मिथ्या सूचनाओं पर लगाम लगाने की जो हमारे समाज को बांटने में अहम भूमिका निभा रही हैं।
’जमशेद खान, कुशीनगर, उत्तर प्रदेश</p>