अक्सर देखा गया है कि खेल के दौरान अगर बल्लेबाजों से रन नहीं बन रहे होते हैं तो वे अपना बल्ला बदल लेते हैं। कुछ इसी तरह का नजारा देश की राजनीति में भी दिख रहा है जब अगले साल होने वाले आम चुनाव में विपक्षी पार्टियां ‘ईवीएम मशीन’ को बदल कर फिर से मतपत्र के जरिए चुनाव कराने की मांग कर रही हैं। इस मुद्दे को लेकर सत्रह दलों का प्रतिनिधिमंडल जल्द ही चुनाव आयोग से मुलाकात कर सकता है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी सहित कई विपक्षी दल मतपत्र से चुनाव की मांग कर रहे हैं। इस मुद्दे को सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद विपक्षी दलों द्वारा उछाला गया था।

सन 1980 में एनबी हनीफा द्वारा बनाया गई पहली ईवीएम मशीन एक महत्त्वपूर्ण बदलाव तो था ही, पूरी दुनिया ने देखा कि हमारा देश टेक्नोलॉजी का कितना जबरदस्त उपयोग करने की काबिलियत रखता है। ईवीएम मशीन से चुनाव कराने पर हजारों टन कागज की बचत होती है और सरकार के करोड़ों रुपए भी हर चुनाव में बच रहे हैं। आज के समय में देश के युवाओं को शायद ही ‘बूथ कैप्चरिंग’ की जानकारी होगी। इसे रोकने में सबसे बड़ी भूमिका ईवीएम मशीन की ही रही है। मगर पिछले कुछ सालों से ईवीएम मशीन का मुद्दा कई बार अदालत और संसद में उठाया गया है लेकिन हर बार चुनाव आयोग ने इसकी विश्वसनीयता पर भरोसा दिखाया है। जब हमारा देश ‘डिजिटलीकरण’ की तरफ बढ़ रहा है तो वह इतनी महत्त्वपूर्ण तकनीक को कैसे छोड़ सकता है? विपक्षी दलों ने कई बार ईवीएम की हैकिंग और प्रोग्रामिंग पर सवाल उठाए हैं लेकिन चुनाव आयोग ने हर बार इसे बेबुनियाद बताया है। चुनाव आयोग ने तो सभी दलों को ईवीएम मशीन ‘हैक’ करके दिखाने की चुनौती भी दी थी लेकिन किसी दल ने उसे स्वीकार करने का साहस नहीं दिखाया था।

निर्वाचन आयोग द्वारा यह भी कोशिश की जा रही है कि 2019 के आम चुनाव में ज्यादा से ज्यादा ‘वीवीपीएटी’ यानी वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल की व्यवस्था को इस्तेमाल में लाया जाए जिसके तहत ज्यादा से ज्यादा वोटर अपना वोट डालने के तुरंत बाद यह जान सकेंगे कि उन्होंने किस पार्टी को वोट दिया है। इस सबके मद्देनजर जरूरी है कि विपक्षी दल ईवीएम मशीन पर अविश्वास दिखाने की बजाय जनता के भीतर अपने प्रति विश्वास जगाने की कोशिश करें ताकि चुनाव में उन्हें ज्यादा से ज्यादा वोट मिल सकें। ईवीएम मशीन की जगह मतपत्र के इस्तेमाल की वकालत करना आगे बढ़ने के बजाय पीछे की ओर जाना ही कहा जाएगा।
’पीयूष कुमार, नई दिल्ली</strong>

आपदा की बारिश
इस बार भी वर्षा ऋतु ने कई प्रदेशों के शहरों और गांवों में हाहाकार मचा दिया है। यह कोई पहली बार नहीं हो रहा है, वर्ष दर वर्ष इस प्रकार की परिस्थितियां निर्मित होती हैं। बाढ़ से हजारों मनुष्य, मवेशी व वन्य जीव काल के गाल मेंं समा जाते हैं। अरबों रुपयों की संपत्ति नष्ट हो जाती है। फिर भी हमने इस समस्या से निपटने के लिए कोई दीर्घकालिक उपाय नहीं किए हैं जो चिंताजनक है। हमारे शहरों में बारिश के पानी को निकालने के माकूल इंतजाम नहीं हैं जो शहरी नियोजन पर ही प्रश्नचिह्न लगाता है। ऐसी जन-धन की हानि न हो इसके लिए दीर्घकालिक उपाय करने की जरूरत है।
’हेमा हरि उपाध्याय, खाचरोद, उज्जैन