सोशल मीडिया और नागरिक समाज की सक्रियता ने फिर एक बड़ी घटना को देश के सामने लाने में सफलता पाई है। बिहार में मेधा घोटाले को जबर्दस्त तरीके से उठाने के बाद इस बार देश के दूरदराज में स्थित चंपारण के रामगढ़वा की घटना को भी बहस के केंद्र में ला दिया है। भारत-नेपाल सीमा पर स्थित रामगढ़वा में इक्कीस वर्ष की युवती का न केवल पहले यौन शोषण हुआ बल्कि बाद में दरिंदों ने पाशविकता की सारी हदें पार करते हुए हथियार के दम पर उससे बलात्कार भी किया। घटना के बाद पीड़िता और उसके परिवार को न्याय के लिए भटकना पड़ा। पुलिस ने मामले की गंभीरता को कमतर दिखाने की तमाम कोशिशें कीं। उसके दावों के विपरीत लोगों ने जबर्दस्त आक्रोश दिखाया और सड़क पर उतर गए।
सोलह दिसंबर 2012 की घटना से इतर इसमें सभी आरोपी गांव के हैं और संबंधी हैं। इन दबंगों के आगे स्थानीय पुलिस ने घुटने टेक दिए और गलत प्राथमिकी दर्ज की। पर स्थानीय जागरूक नागरिकों और सोशल मीडिया के माध्यम से मामले का वह रूप सामने आया जिसे पुलिस अब तक ढंक रही थी। अब यह राष्ट्रीय स्तर पर बहस के केंद्र में है और राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी मामले का संज्ञान लिया है। आखिर हमारा शासन क्यों इस हद तक असंवेदनशील है कि अन्याय के विरुद्ध खड़े होने के बजाय उसे ढंकने की कोशिश करता है? क्या हर चीज के लिए जनता को सड़क पर आना होगा?
अंकित दूबे, टिकुलियां ग्राम, पूर्वी चंपारण