भारत के संविधान के अनुच्छेद 331 में एंग्लो-इंडियन समुदाय के अधिकतम दो सदस्यों को संसद में मनोनयन करने का प्रावधान है। वहीं की देश की सभी विधानसभाओं में एंग्लो-इंडियन समुदाय के अधिकतम एक सदस्य के मनोनयन का प्रावधान है। आमतौर पर हरेक विधानसभा सदस्य का एक वर्ष में वेतन/ भत्ते पर होने वाला व्यय लगभग नौ लाख है। सांसद पर होने वाला व्यय ग्यारह लाख या इससे ज्यादा निश्चित ही होगा। इसके अतिरिक्त मकान, फोन, मुफ्त यात्रा सहित अन्य सुविधाएं अलग से होती हैं, जिन पर होने वाला व्यय प्रति वर्ष कम से कम पांच लाख है। मनोनयन से पद हासिल करने के कारण इनकी जनता के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं होती।

लोकसभा या विधानसभा की कार्यवाही में भी इनका योगदान नगण्य ही रहता है। अगर अंग्रेज अहसान करते तो भी समझ में आता कि उनके समुदाय को देश में विशेषाधिकार दिए जाएं। जब उन्होंने कोई अहसान नहीं किया तो उसकी कीमत देश की जनता क्यों चुकाए! और तो और, संविधान के अनुच्छेद 337 में एंग्लो-इंडियन समुदाय के फायदे के लिए उपबंध दिए गए हैं। ये सभी प्रावधान हमारी गुलाम मानसिकता का परिचायक हैं।

मिलिंद रोंघे, इटारसी