सरकार ने पहले प्रीमियर और सुविधा ट्रेन के नाम पर हवाई जहाज से भी अधिक किराया वसूला और अब शताब्दी, राजधानी और दुरंतो जैसी महत्त्वपूर्ण रेलगाड़ियों के यात्रियों को ठगने की तर्कहीन योजना बना डाली है। दूसरी ओर सरकार कहती है कि उसके कार्यकाल में कोई घोटाला नहीं हुआ, एक करोड़ लोगों ने गैस सब्सिडी छोड़ दी, कोयला, टेलीकॉम से अरबों रुपए अधिक मिले, आधार कार्ड से 36 हजार करोड़ बचाए जा चुके हैं। आखिर कहां जा रहा है यह बचा हुआ पैसा? फिर भी रेलवे किसी न किसी रूप में बराबर किराए बढ़ाता ही जा रहा है। तर्क दिया गया है कि नई किराया व्यवस्था वाली गाड़ियों के यात्री संपन्न तबके के होते हैं। तो क्या इसका मतलब है लूट लो उन्हें?

निरस्तीकरण के नाम पर प्रतीक्षारत और आरएसी वालों से 65 रुपए काटने की बात कही जाती है, लेकिन 46 रुपए सेवा प्रभार के भी वापस नहीं मिलते। कम दूरी की यात्रा के मामले में तो कुछ नहीं मिलाता। नई व्यवस्था में शुरू के दस प्रतिशत यात्री बनने के चक्कर में लोग जल्दी से जल्दी आरक्षण कराएंगे। इससे रेलवे को जहां एक ओर महीनों पहले करोड़ों रुपए मिल जाएंगे वहीं दूसरी ओर आरक्षण के निरस्तीकरण का लाभ भी मिलेगा क्योंकि अधिक समय पहले कराए गए आरक्षण के निरस्तीकरण की संभावना अधिक होती है। इन निरस्तीकृत स्थानों पर फिर से आरक्षण होगा तो तीस-चालीस फीसद अधिक किराया वसूला जाएगा। यह अंधेर नहीं तो और क्या है!
’यश वीर आर्य, देहरादून