प्रतीकों का प्रहसन
‘पद््मावती’ फिल्म को लेकर एक किस्म का उफान भारत में दिख रहा है। राजपूतों के पुरोधाओं ने तो दीपिका पादुकोण को सूर्पनखा कह कर नाक काटने की धमकी तक दे डाली, जिसके चलते दीपिका की सुरक्षा बढ़ा दी गई। अभी तक मामला करणी सेना और संजय लीला भंसाली तक सीमित था, लेकिन अब इसमें राजपरिवार भी घुस गया है। राजपरिवार ने राजपूती मर्यादा का खयाल रखने की सलाह दी है।मामला सिर्फ फिल्म या लिखने-बोलने की स्वतंत्रता का नहीं है। बात उन प्रतीकों की है जिन्हें हमने अपने नफे-नुकसान के लिए जिंदा रखा है। भारत में वे लोग हैं जो अपने राजनीतिक उद्देश्य के लिए इतिहास को अपने तरीके से परिभाषित करते हैं। इनमें मुख्य रूप से दो प्रकार के लोग हैं। पहले वे जो धर्म को नकारते हुए व्यक्ति की तुलना करते हैं। जैसे कि औरंगजेब आक्रांता था जबकि अकबर महान। दूसरे वे लोग हैं जो या तो यह मानते हैं कि मुसलिम शासकों ने हिंदू गरिमा को ठेस पहुंचाई, या फिर वे, जो मुगलकाल में आए हमलावरों को अपना हीरो मानते हैं। ये वही लोग हैं जो अपने बच्चों का नाम तैमूर रखते हैं। असली समस्या वहीं है जहां कोई मुहम्मद गोरी को अपना हीरो मानता है और कोई पृथ्वीराज को। दोनों तरह के लोग भारतीय समाज में हैं, जिसका फायदा फिल्मकार और राजनेता, दोनों उठाना चाहते हैं। एक इन्हें उकसा कर मुफ्त में फिल्म का प्रचार चाहता है तो दूसरा एक राजनीतिक समझौता।
करणी सेना का पद््मावती के इतिहास से कुछ खास लेना-देना नहीं लगता है। उसका लेना-देना उस भावना से है जो पद््मावती में अपना स्वाभिमान देखती है। अगर इतिहास से लेना-देना होता तो करणी सेना पद््मावती को साहित्य से निकाल कर इतिहास में रखने का प्रयास करती। वहीं फिल्म इतिहास पर गढ़ी गई है, लेकिन क्या वह पूर्णरूप से ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है? वास्तव में संजय लीला भंसाली लगातार इस बात को बताने से बच रहे हैं कि फिल्म दंतकथाओं पर आधारित है। वे सिर्फ यह कह रहे हैं कि फिल्म के इतिहास पर उन्होंने काफी काम किया है। जबकि इतिहासकारों का बड़ा वर्ग इसे इतिहास का हिस्सा ही नहीं मनता।रोमिला थापर इतिहास की अपनी किताब में लिखती हैं कि 1842 में भारत के तब के गवर्नर जरनल लॉर्ड ऐलेनबरो ने अफगानिस्तान में अंग्रेज सेना के प्रमुख जनरल नॉट से कहा कि वह गजनी से महमूद के कब्र से वह दरवाजा लेकर आए जिसे महमूद सोमनाथ से लूट कर ले गया था। जब दरवाजा आया तो ऐलेनबरो ने इसे हिंदू गौरव से जोड़ दिया। लेकिन उसका मकसद सिर्फ भारतीयों के बीच खाई पैदा करना था। आज के दौर के नेता भी कुछ ऐसा ही प्रयास कर रहे हैं। बात उस हिंदू गौरव की है जिसे सब अपने-अपने तरीके से इस्तेसाल करना चाहते हैं। फिल्मकार और राजनेता दोनों चाहते हैं कि इस तरीके की फिल्में बनती रहें और आप सड़क पर लाल, हरा, भगवा झंडा लेकर नाचते रहें!
’रजत सिंह, जौनपुर, उत्तर प्रदेश</p>
गंभीर चुनौती
जनसंख्या विस्फोट और मनुष्य की भौतिकवादी जीवन शैली ने मिल कर प्राकृतिक संसाधनों का इतना अंधाधुंध दोहन किया है कि पर्यावरणीय समस्याएं गंभीर होती जा रही हैं। शहरीकरण व औद्योगीकरण में अनियंत्रित वृद्धि, जंगलों का नष्ट होना, कल-कारखानों से निकलता धुआं, कचरे से भरी नदियां, सूखे की मार, अचानक बाढ़ की स्थिति, रासायनिक गैसों से भरा प्रदूषित वातावरण, सड़कों पर वाहनों की भरमार, लाउडस्पीकरों की कर्कश ध्वनि आदि ने पर्यावरणीय संकट उत्पन्न करके मानव को भविष्य के प्रति बेहद आशंकित कर दिया है। सांस लेने के लिए शुद्ध हवा कम पड़ने लगी है। दिनोंदिन पेयजल के विकराल होते संकट ने दुनिया के सामने एक नई चुनौती पैदा कर दी है। पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, जीव-जंतु, जानवर और स्वयं मानव भी अपने अस्तित्व के संकट की चपेट में आ चुका है। पृथ्वी केवल मनुष्य की नहीं है बल्कि अन्य जीवधारियों की भी है। हमारी सोच मानव केंद्रित न होकर पारिस्थितिकी केंद्रित होनी चाहिए। तभी हम आने वाली पीढ़ी को सुरक्षित जीवन दे सकेंगे।
’मुकेश कुमावत, जयपुर</p>
बीमारी की दवा
हर साल 13 से 19 नवंबर के बीच विश्व एंटीबायोटिक जागरूकता सप्ताह मनाया जाता है। यह सप्ताह एंटीबायोटिक दवाओं के संतुलित और बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए समर्पित होता है। दरअसल, आजकल बीमारियों में तुरंत आराम के लिए एंटीबायोटिक्स का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो रहा है लेकिन इनका असंतुलित उपयोग कई समस्याओं की वजह बन रहा है। अनेक रोगों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली एंटीबायोटिक्स खुद बीमारी की वजह के रूप में सामने आ रही हैं। दुनिया भर में एंटीबायोटिक्स का दुरुपयोग हो रहा है। एंटीबायोटिक्स हर बीमारी का इलाज नहीं हैं। लोगों के बीच इस बात को फैलाने की जरूरत है कि एंटीबायोटिक्स सिर्फ बैक्टीरियल संक्रमण से होने वाली बीमारियों पर असरदार हैं। वायरल बीमारियों, जैसे सर्दी-जुकाम, फ्लू, ब्रांकाइटिस, गले के संक्रमण आदि में ये कोई लाभ नहीं पहुंचातीं। इनके अनियंत्रित उपयोग से रोगकारक बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक्स के लिए प्रतिरोधकता उत्पन्न हो रही है। ये एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया ज्यादा लंबी और गंभीर बीमारियों का कारण बनते हैं।
ये एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया बहुत तेजी से फैलते हैं। केमिस्ट बिना किसी डॉक्टर की पर्ची के भी एंटीबायोटिक्स बेच रहे हैं जो बेहद चिंताजनक है। एक अध्ययन के अनुसार, आज सत्तर-पचहत्तर फीसद चिकित्सक सामान्य सर्दी-जुकाम के लिए भी एंटीबायोटिक्स लिख रहे हैं जबकि अधिकांश वायरल बीमारियां अपने आप ठीक हो जाती हैं। इसलिए अपनी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की कोशिश की जानी चाहिए। बैक्टीरियल इन्फेक्शन से बचने के लिए स्वच्छता का ध्यान रखना होगा। बच्चों को समय-समय पर आवश्यक टीके लगवाना सुनिश्चित करना होगा। बेहद जरूरी होने और चिकित्सक की सलाह पर ही एंटीबायोटिक्स का सेवन करना किसी भी प्रकार की समस्या से बचने का कारगर उपाय है।
’ऋषभ देव पांडेय, जशपुर, छत्तीसगढ़