रोजगार का सवाल
हाल ही में आई श्रम आयोग की रिपोर्ट के अनुसार बेरोजगारी की दर 2015-16 में पांच प्रतिशत तक पहुंच गई है, जो पिछले पांच साल का सर्वोच्च स्तर है। पिछले कुछ वर्षों के आंकड़े देखें तो बेरोजगारी दर लगातार बढ़ रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो हालात काफी खराब हैं। ग्रामीण युवाओं को मजबूरन शहरों का रुख करना पड़ रहा है जिससे शहरों में रहने वाले युवाओं के लिए मौजूद रोजगार के अवसर भी कम हुए हैं। कृषि आधारित उद्यमों को बढ़ावा न मिलने से छोटे शहरों और गांवों में रोजगार सृजन की दर शहरों के मुकाबले काफी कम हुई है। इसका सबसे ज्यादा खमियाजा ग्रामीण महिलाओं को भुगतना पड़ रहा है। कृषि और ग्रामीण उद्योगों की खस्ता हालत के चलते असंगठित क्षेत्र में भी रोजगार कम हुआ है।
2011 में बेरोजगारी दर 3.8 प्रतिशत थी जो साल-दर-साल बढ़ते-बढ़ते 2016 में पांच प्रतिशत तक पहुंच चुकी है और निकट भविष्य में इसके और बढ़ने की आशंका है। भले ही 7.3 प्रतिशत की विकास दर के साथ भारत दुनिया में सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था हो मगर उसका फायदा रोजगार के क्षेत्र में होता नहीं दिख रहा। निर्यात में आ रही कमी के कारण लोगों की नौकरियां जा रही हैं। कृषि और कपड़ा उद्योग, जिनमें रोजगार सृजन की सबसे ज्यादा संभावनाएं होती हैं, उन पर सरकार का ज्यादा ध्यान नहीं है। ग्रामीण और लघु उद्योगों पर भी सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता है।
भारत जैसी जनसंख्या वाले देश में जहां बेरोजगारों की पूरी फौज तैयार खड़ी है, श्रम-प्रधान उद्योगों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है, वरना स्थिति बद से बदतर होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। चीन ने भी बेरोजगारी पर काबू पाने के लिए श्रम आधारित उद्योगों को बढ़ावा दिया है जिसमें उसे काफी सफलता भी हासिल हुई है। वहां ऐसे उद्योगों को प्राथमिकता दी जा रही है जिनमें ज्यादा से ज्यादा रोजगार सृजन हो सके, पर भारत में इसके विपरीत ऐसे उद्योगों को बढ़ावा दिया जा रहा है जहां श्रमशक्ति की मांग बहुत कम है। सरकार द्वारा कौशल-विकास को प्रोत्साहन तो दिया जा रहा है, पर कुशल कारीगरों के लिए रोजगार मुहैया करा पाने में सरकार को विशेष प्रयास करने की आवश्यकता है। इसमें ग्रामीण, लघु, कुटीर और कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा देना अहम है।
एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2022 तक निजी क्षेत्रों में स्नातक या उससे ज्यादा पढ़े-लिखे लोगों के लिए महज तीस लाख नौकरियां निकलने की संभावना है, जबकि इससे उलट गैर-स्नातकों को चार करोड़ बीस लाख रोजगार के अवसर मिलेंगे। यह एक गंभीर चिंता का विषय है। देश के विश्वविद्यालयों में लगभग तीन करोड़ छात्र अध्ययनरत हैं और हर साल अस्सी लाख छात्र स्नातक की डिग्री लेकर निकलते हैं। इन आंकड़ों से साफ जाहिर है कि बेरोजगारी की समस्या आने वाले दिनों में गंभीर होने वाली है। रोजगार सृजन के उपायों पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है। साथ ही सरकार को इस परिस्थिति से निबटने के लिए पहले से सचेत रहना होगा।
युवाओं में बढ़ती नशाखोरी और अपराध का मुख्य कारण बेरोजगारी ही है, जिसके मकड़जाल में फंस कर वे अपना जीवन बर्बाद कर लेते हैं। युवा देश का भविष्य हैं। अगर पढ़ने-लिखने के बाद भी उन्हें रोजगार के लिए दर-दर भटकना पड़े तो उस समाज का विकास संभव नहीं है।
’अश्वनी राघव, उत्तम नगर, नई दिल्ली</p>