भारत को युवाओं का राष्ट्र कहा जाता है, लेकिन आज का युवा जुआ, नशा जैसी अनेक बीमारियों की दलदल मे धंसता जा रहा है। स्वामी विवेकानंद को जिस युवा के नाम पर गर्व था। आज उसी युवा ने खुद को इस गर्त पर लाकर खड़ा कर दिया है। गलती सिर्फ उसकी नहीं, बल्कि कहीं न कहीं समाज और सरकार की भी है। क्या हम इसी युवा के साथ समग्र भारत का सपना संजोए बैठे हैं?
’संजीव कुमार, राजौंद
चौपाल: धुंध में सपने
आज उसी युवा ने खुद को इस गर्त पर लाकर खड़ा कर दिया है।
Written by जनसत्ता

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First published on: 02-11-2016 at 05:36 IST