एक ओर जहां दिल्ली सरकार अपने 105 मोहल्ला क्लीनिकों की प्रशंसा करते नहीं थक रही, वहीं दूसरी ओर दिल्ली में फैली डेंगू-चिकनगुनिया जैसी बीमारियां उसे मुंह चिढ़ा रही हैं। इन क्लीनिकों का फायदा ही क्या जब ये न तो प्राथमिक उपचार उपलब्ध करा पा रहे हैं और न उनके पास कोई व्यवस्थित जांच प्रणाली है। सवाल है कि जब पूरे शहर में दिल्ली सरकार, दिल्ली नगर निगम और एनएचआरएम की डिस्पेंसरिया पहले से मौजूद हैं तो उनसे महज सौ मीटर की दूरी पर मोहल्ला क्लीनिक क्यों खोले गए? कहीं सरकार ने मोहल्ला क्लीनिक बिना जरूरत और विस्तृत सर्वे विश्लेषण व अध्ययन के तो नहीं खोल दिए? क्यों इनमें प्राइवेट डॉक्टरों को बैठाया गया है, जो दिन में केवल चार घंटे काम करते हैं और प्रतिमाह औसत 75 से 80 हजार रुपए ले रहे हैं? कहीं यह भी अन्य योजनाओं की तरह जनता के साथ एक छलावा न हो जाए!
’वीरेश्वर तोमर, हरिद्वार, उत्तराखंड