दिखावे के बजाय
हम केवल बड़े और महत्त्वपूर्ण होने का दिखावा करने में विश्वास करते हैं जबकि वास्तविकता की ओर से आंखें मूंदे रहते हैं। हमारे नेता यह कह कर संतुष्ट हो जाते हैं कि उन्होंने अपने गांव या कस्बे में कोई स्कूल-कॉलेज खुलवा लिया है, लेकिन उन्हें इस बात से कोई सरोकार नहीं रहता कि उनके द्वारा खुलवाया गया राजकीय शक्षण संस्थान अपनी भूमिका का ठीक से निर्वाह करके उस गांव-कस्बे के युवाओं को वास्तव में शिक्षित कर भी पा रहा है या नहीं। वे केवल अपनी उपलब्धियों की सूची गिना कर वाहवाही लूटते रहते हैं।
झूठे दिखावे की इस प्रवृत्ति को हमारे समाज के अन्य क्षेत्रों में भी बड़ी आसानी से देखा जा सकता है। विवाह समारोहों पर हमारे यहां लाखों रुपए खर्च कर दिए जाते हैं लेकिन उन बातों पर बहुत कम विचार किया जाता है जो एक लड़के और लड़की के लिए दांपत्य को सार्थक और खुशी देने वाला संबंध बनाने में मददगार हो सकें।
’सदाशिव श्रोत्रिय, आनंद कुटीर, नाथद्वारा
असुरक्षित लड़कियां
विश्वविद्यालय हो या स्कूल, या कोई भी सार्वजनिक स्थान, लड़कियां कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। हर जगह, हर समय उन्हें डर सताता रहता है कि कोई अनहोनी न हो जाए। लिहाजा, यह अत्यंत आवश्यक है कि सरकार लड़कियों की सुरक्षा को लेकर गंभीर हो ताकि उनके अंदर के डर को निकाला जा सके। तमाम सतर्कता के बाद भी स्कूल-कॉलेजों या अन्य जगहों पर जिस तरह की घटनाएं हो रही हैं, उनसे लड़कियों की सुरक्षा के इंतजामों पर सवालिया निशान लगते रहते हैं। यह हमारे पुरुष-प्रधान समाज के लिए भी शर्मिंदगी का सबब है। सरकार और विश्वविद्यालयों को इस बाबत कड़ा रुख अपनाना होगा। प्रत्येक विश्वविद्यालय में सीसीटीवी कैमरे लगने चाहिए। इससे जहां परिसर में लड़कियां सुरक्षित रहेंगी, वहीं पठन-पाठन भी सुचारु रूप से हो सकेगा।
’सुशील कुमार वर्मा, गोरखपुर विश्वविद्यालय