स्त्री के सम्मान और सुरक्षा की वकालत समाज लंबे अरसे से करता आया है। वह नवरात्र के नौ दिन नारी को देवी का रूप मान कर उसकी पूजा तो करता है पर इसके विपरीत कड़वी सच्चाई है कि साल के बाकी दिनों में उसके साथ बलात्कार, प्रताड़ना जैसे अनगिनत अत्याचार करने में समाज जरा भी नहीं हिचकिचाता है। समाज के ठेकेदार कभी कलमुंही तो कभी करमजली कह कर बेटा पैदा न होने पर नारी को बालों से घसीट कर इंसानियत को तार-तार करते भी देखे जा सकते हैं। ससुराल में पति की डांट, सांस के ताने, रिश्तेदारों के गहरे जख्म देते अनगिनत गालीनुमा बोलों को चेहरे की बनावटी मुस्कान के पीछे छिपाकर स्त्री किसी तरह जिंदा लाश बनकर जीती रहती है। विडंबना है कि यह सब उस देश में हो रहा है जहां सरस्वती, लक्ष्मी, सीता, सावित्री को समूचा समाज असीम सम्मान देता है।
’देवेंद्रराज सुथार, जालोर, राजस्थान
चौपाल: कड़वा सच
समाज के ठेकेदार कभी कलमुंही तो कभी करमजली कह कर बेटा पैदा न होने पर नारी को बालों से घसीट कर इंसानियत को तार-तार करते भी देखे जा सकते हैं।
Written by जनसत्ता
नई दिल्ली

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First published on: 04-10-2016 at 06:32 IST