विज्ञापनों की रंगीन दुनिया नित नवीन कलेवर में अपनी चमक से लोगों को अभिभूत करती रहती है। सुबह उठते ही बच्चे ‘इस कॉलगेट में नमक है क्या’ जैसे वाक्यों से आपस में संवाद करते हैं। ‘मम्मी हमें भूख लगी है’, के बाद ‘दो मिनट’ का झांसा देकर मां बच्चों को जो परोसती है, उस पर कितने प्रश्न-चिह्न उठे! कोई भी कंपनी अपने उत्पादों को जनसाधारण तक पहुंचाने के लिए अनेक साधनों का प्रयोग करते हैं, उनमें से एक है विज्ञापन। विज्ञापन वह रेतीली बंजर भूमि की चमक है जो सभी को रूपहले ख्वाब दिखा कर भ्रमित करती है। आज हमारे जीवन मे खान-पान की चीजों, सौंदर्य उत्पादन, पेय पदार्थ और अन्य दैनिक उपयोगी वस्तुओं को चैनल या मीडिया जिस प्रकार उत्पादों की गुणवत्ता बता कर जनता को परोस रहे हैं, उसे देख छोटे बच्चे से लेकर युवा जगत भी पाने की होड़ में रहता है और इसके मायाजाल में फंस कर अपनी कीमती आय उस पर खर्च करता है। विज्ञापन एजेंसियों का उद्देश्य सिर्फ लाभ कमाना ही नहीं होना चाहिए, बल्कि अपनी सामाजिक जिम्मेदारी भी समझनी चाहिए। अब उपभोक्ता को भी कोई उत्पाद खरीदने से पहले उसकी भली प्रकार जांच-परख कर लेना चाहिए।
’चारु शिखा, उन्नाव, उत्तर
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