कभी हिंद महासागर के तट पर स्थित सोनार बांग्ला का एक हिस्सा मजहबी सियासत की भेंट चढ़ा और वैमनस्य के आधार पर गढ़े गए मुल्क पाकिस्तान का हिस्सा बन गया। जल्द ही उसे घुटन महसूस होनी थी क्योंकि वे पहले बंगाली थे, बाद में हिंदू-मुसलमान। एक मजहबी राष्ट्र में उनका सांस ले सकना दूभर था। उनके लिए वुजू-आचमन से पहले धान-मछली थी। मुसलिम घरों की बेटियां भी गंगा और पद््मा हुआ करती थीं तो मुसलिम भी धोती बांधते थे। सुबह की नमाज राग भैरवी तो शाम की यमन में हुआ करती थी। यही बंगालियत थी जो इस्लामी गणराज्य में बुरी तरह से घुट रही थी। इसके बाद वही हुआ जो होना चाहिए था। रजत जयंती से पूर्व ही पाकिस्तान खंडित हुआ। दक्षिण एशिया में भारत के बाद एक और प्रजातांत्रिक-धर्मनिरपेक्ष और बहुलतावादी देश का जन्म हुआ।
आज यह देखना दुर्भाग्यपूर्ण है कि वहां पर अल्पसंख्यक आबादी निरंतर घट रही है। आए दिन हिंदुओं-बौद्धों और ईसाइयों के प्रार्थना स्थलों को निशाना बनाया जा रहा है। हर दिन करीब पौने पांच सौ हिंदू देश छोड़ रहे हैं। बंगालियत कहीं गुम होती जा रही है। उसकी जगह तेजी से सर्व-इस्लामवाद ले रहा है। वह विचारधारा जो सारी तस्वीर को बदरंग कर दुनिया में सिर्फ एक रंग चाहती है। बांग्लादेश सरकार को चेतना होगा, हिंदुओं के लिए न सही, अपनी राष्ट्रीयता के मूल के प्रति ही सही।
’अंकित दूबे, जेएनयू, नई दिल्ली</p>