वर्तमान समय में पूरी दुनिया के साथ बिहार में भी कोरोना का कहर जारी है। इस महामारी से निपटने के लिए सरकार जद्दोजहद कर रही है। बढ़ते प्रकोप के बावजूद ऐसा लग रहा है, मानो सरकार विधानसभा चुनाव कराने के लिए कटिबद्ध हो। लेकिन आज कोरोना का प्रकोप कहर ढा रहा है, लोगों को इलाज की जरूरत है। ऐसे में चुनाव करा कर सरकार लोगों में महामारी के खतरे को और बढ़ाएगी ही। होना तो यह चाहिए कि अभी सारे कामों के ऊपर संकट की महामारी से निपटने को वरीयता देनी चाहिए, लेकिन सरकार द्वारा जिस तरह के संकेत दिए जा रहे हैं, यह उचित नहीं है।
जिस तरह सभी संस्थानों में कर्मचारी, अधिकारी कोरोना के शिकार होते जा रहे हैं, उसमें आम लोग दहशत में हैं। दूसरी ओर, स्वास्थ्य सुविधाएं बदतर स्थिति में है। चुनावों के जद्दोजहद में जिस तरह लोगों का रैली बाहर निकलती है, इससे संकट और गहराएगा ही। सरकार को चुनाव कराने की इतनी ही ज्यादा जरूरत लग रही है तो इसके लिए सबसे पहले बीमारी से लोगों की सुरक्षा तय की जानी चाहिए। लोकतंत्र को जिंदा रखना जरूरी है, लेकिन किसी महामारी के संकट को अनदेखा नहीं किया जा सकता। सवाल यह है कि बीमारी के नाम पर जिस तरह की नई व्यवस्था बनाई जा रही है, उसमें लोकतंत्र अपने मूल स्वरूप में कितना बच सकेगा!
’मिथिलेश कुमार भागलपुर</p>
बिन पानी
इंसान ने धरती से जल को विभिन्न जरिए निकाल कर धरती पर जल संकट पैदा कर लिया है। अगर अभी भी धरती तक बारिश की जल की बूंदों को पहुंचाने के लिए गंभीरता नहीं दिखाई गई तो वह दिन दूर नहीं है, जब हमारे देश में रेगिस्तान का विस्तार हो जाएगा। इसके बाद हमारे देश में ही भारी जलसंकट पैदा होगा और यह भी हो सकता है कि हमारी भावी पीढ़ी को पीने के लिए भी जल उचित मात्रा में न मिले। हमारे देश में जल संरक्षण के लिए सरकारें बातें तो बहुत करती हैं, लेकिन यह हकीकत से बहुत दूर होती हैं।
जल संरक्षण के लिए वर्षा जल को संभालने के लिए भी सरकारों और प्रशासन ने ढुलमुल रवैया अपनाया है। अगर वर्षा जल संरक्षण के लिए बने नियमों का वाकई पालन हो रहा होता तो आज आसमान से बरसने वाली अमृत की बूंदें सीवरेज या नालों-नालियों मे बेकार न बहतीं, बल्कि लगभग हर घर, दफ्तर और फैक्ट्रियों मे वर्षाजल हार्वेस्टिंग सिस्टम लगा कर लोग इन अमृत की बूंदों को संभाल कर रखते।
’राजेश कुमार चौहान, जलंधर