द्वितीय विश्व युद्ध में भारत का समर्थन लेने के बावजूद जब अंगरेज भारत को स्वतंत्र करने को तैयार नहीं हुए तो महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन के रूप में आजादी की जंग का एलान कर दिया। नौ अगस्त, 1942 में इस आंदोलन की शुरुआत हुई थी, इसीलिए नौ अगस्त के दिन को ‘अगस्त क्रांति दिवस’ के रूप में जाना जाता है।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अंगरेजों को भारत छोड़ने के लिए चार जुलाई, 1942 को एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें कहा गया कि अगर अंगरेज भारत नहीं छोड़ते हैं तो उनके खिलाफ व्यापक स्तर पर नागरिक अवज्ञा आंदोलन चलाया जाए। पार्टी के भीतर इस प्रस्ताव को लेकर मतभेद पैदा हो गए और चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने पार्टी छोड़ दी।
पंडित नेहरू और मौलाना अबुल कलाम आजाद प्रस्तावित आंदोलन को लेकर शुरुआत में संशय में थे, लेकिन उन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान पर अंत तक इसके समर्थन का फैसला किया। गांधीवादियों और समाजवादियों ने इस तरह के किसी भी आंदोलन का खुल कर समर्थन किया।
आंदोलन के लिए कांग्रेस को सभी दलों को एक झंडे तले लाने में सफलता नहीं मिली। इस आह्वान का मुसलिम लीग, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और हिंदू महासभा ने विरोध किया। आठ अगस्त, 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के बंबई सत्र में भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित किया गया। भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित होने के बारे में ब्रितानिया हुकूमत पहले से ही सतर्क थी इसलिए गांधीजी को अगले ही दिन पुणे में कैद कर दिया गया।
अहमदनगर किले में कांग्रेस कार्यकारी समिति के सभी कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर बंद कर दिया गया। लगभग सभी नेता गिरफ्तार कर लिए गए। लेकिन गिरफ्तारियों की वजह से कांग्रेस का समूचा नेतृत्व शेष दुनिया से लगभग तीन साल तक कटा रहा। गांधीजी का स्वास्थ्य जेल में बिगड़ गया। लेकिन फिर भी उन्होंने अपना आंदोलन जारी रखने के लिए इक्कीस दिन की भूख हड़ताल की। गांधीजी का स्वास्थ्य बिगड़ जाने पर अंगरेजों ने उन्हें रिहा कर दिया। 1944 के शुरू तक अंगरेजों ने हालात पर काबू पा लिया, जिससे बहुत से राष्ट्रवादी अत्यंत निराश हुए। गांधीजी और जिन्ना को, मुसलिम लीग, वामपंथियों और अन्य विरोधियों की आलोचना का सामना करना पड़ा।
कभी-कभी जल्दबाजी में ऐसे कदम उठा लिए जाते हैं जिनमें शिकस्त की संभावना अधिक होती है। इससे जनहानि भी और निराशा का संचार भी। यों विद्रोह और क्रांतियां अक्सर विफल होती हैं। पर क्रांतिधर्मी रणबांकुरे अपना हौसला और धैर्य नहीं छोड़ते। इसीलिए नौ अगस्त भारत के इतिहास में पूरी गरिमा के साथ दर्ज है।
शैलेंद्र चौहान, प्रतापनगर, जयपुर
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