जनसत्ता 20 अक्तूबर, 2014: भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपनी पहली शिखर स्तरीय बैठक में भारत, अमेरिका द्विपक्षीय संबंधों को ‘नए स्तर’ पर ले जाने, असैन्य परमाणु करार को लागू करने में आ रही बाधाओं को दूर करने और आतंकवाद से लड़ने में परस्पर सहयोग करने की प्रतिबद्धता जताई। दोनों नेताओं के बीच लंबी चली बातचीत में आर्थिक सहयोग, व्यापार और निवेश सहित व्यापक मुद्दों पर चर्चा की गई और मोदी ने अमेरिका में भारतीय सेवा-क्षेत्र की पहुंच को सुगम बनाने की मांग की। दोनों देशों के बीच अपने रक्षा सहयोग को दस वर्ष और बढ़ाने पर सहमति बनने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी कंपनियों को भारतीय रक्षा उत्पादन क्षेत्र में भागीदारी करने का निमंत्रण दिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि दोनों देशों के बीच रक्षा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर भी सहमति बनी है। राष्ट्रपति ओबामा के साथ बातचीत में सुरक्षा वार्ता और रक्षा सहयोग से जुड़े साझा हितों के विषय पर चर्चा हुई। मोदी ने कहा, हम दोनों असैन्य परमाणु सहयोग करार को आगे ले जाने पर सहमत हुए हैं। हम इससे जुड़े मुद्दों का शीघ्र समाधान निकालने के प्रति गंभीर हैं। भारत की ऊर्जा सुरक्षा जरूरतों के लिए यह बहुत आवश्यक है।
गौरतलब है कि मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार और अमेरिका में बुश प्रशासन के दौरान भारत अमेरिका असैन्य परमाणु करार हुआ था, लेकिन जवाबदेही कानूनों से जुड़े मुद्दों पर यह आगे नहीं बढ़ पा रहा है। साथ ही मोदी ने ओबामा से आग्रह किया कि वे ऐसे कदम उठाएं, जिससे भारतीय कंपनियां सेवा-क्षेत्र में अमेरिका के बाजार में आसानी से पहुंच बना सकें। रक्षा क्षेत्र के बारे में प्रधानमंत्री ने कहा कि दोनों पक्षों ने सुरक्षा और रक्षा संबंधी वार्ता को और आगे बढ़ाने का निर्णय किया है। उन्होंने अमेरिकी रक्षा कंपनियों से भारतीय रक्षा उत्पादन क्षेत्र में सहयोग करने की अपील की।
उल्लेखनीय है कि भारत ने हाल ही में रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को छब्बीस से बढ़ा कर उनचास प्रतिशत कर दिया है। दक्षिण और पश्चिम एशिया में उभरती आतंकवाद की चुनौतियों पर चिंता व्यक्त करते हुए मोदी ने कहा कि दोनों देश आतंकवाद निरोधक तंत्र और खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान में सहयोग और बढ़ाने पर सहमत हुए हैं।
शिखर वार्ता के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में मोदी और ओबामा ने साझा बयान जारी किया। जिसके अनुसार दोनों देशों के बीच परमाणु ऊर्जा के मुद्दे को सुलझाने पर सहमति बनी और असैन्य परमाणु सहयोग करार को आगे बढ़ाने पर प्रतिबद्धता जताई गई। डब्ल्यूटीओ में भारत की खाद्य सुरक्षा चिंता का अमेरिका खयाल रखेगा। भारत मुक्त व्यापार का समर्थन करता है, लेकिन खाद्य सुरक्षा भी जरूरी। भारत की ‘लुक ईस्ट और लिंक वेस्ट’ नीति का अहम हिस्सा है अमेरिका। दोनों के बीच वैश्विक साझेदारी बहुत जरूरी बताई गई। अंतरराष्ट्रीय स्तर के मुद्दों पर दोनों देशों के विचारों में समानता रही। यह माना गया कि अफगानिस्तान में सहयोग जारी रहेगा। दोनों देश रक्षा संबंधों को आगे बढ़ाएंगे। भारत और अमेरिका के बीच आर्थिक संबंधों का विस्तार होगा। दक्षिण और पश्चिम एशिया में आतंकवाद की चुनौतियों के साथ एशिया प्रशांत क्षेत्र में शांति के बारे में बात हुई।
दरअसल, जितने जोर-शोर से मोदी की अमेरिकी यात्रा को महिमामंडित किया जा रहा था अंतत: वह सिर्फ एक सामान्य यात्रा ही साबित हुई। आखिर मोदी ने ऐसा क्या पाया जिस पर हम गर्व कर सकें। भारत को बाजार समझने की अमेरिकी नीति सर्वविदित है और अमेरिका इसका इजहार एक नहीं हजारों बार कर चुका है। वह भारत में ऐसा सुरक्षित वित्तीय निवेश चाहता रहा है जिसमें उसे बस फायदा ही फायदा हो। बहरहाल, मोदी के हर कदम को अभूतपूर्व ठहराया जा रहा है और मीडिया इसमें अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
शैलेंद्र चौहान, प्रताप नगर, जयपुर
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