जनसत्ता 11 नवंबर, 2014: उद्धव ठाकरे की कथनी और करनी में बहुत अंतर है। कभी वे कहते हैं कि हमें कुर्सी का मोह नहीं है।

कभी फरमाते हैं कि हमारी तो केवल हिंदुत्व की लड़ाई है। दूसरी तरफ परदे के पीछे उपमुख्यमंत्री पद और ज्यादा संख्या में मलाईदार मंत्रालयों के लिए भाजपा को ब्लैकमेल करने की चालें। उद्धव शिवसेना को ‘आप’ बनाने पर तुले हुए हैं!

लगता है, जब तक वे शिवसेना जैसी महाराष्ट्र की एक नंबर की पार्टी को आखिरी नंबर तक नहीं पहुंचा देते तब तक चैन की सांस नहीं लेंगे!

 

अरविंद गोस्वामी, कुंदनकुंज, मेरठ

 

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