जिस देश में नारी की पूजा होने के दावे दंभ के साथ किए जाते रहे हैं, वहीं आज महिलाओं को लगभग रोज छेड़खानी, अश्लीलता, बलात्कार, अपहरण और दहेज हत्या जैसे उत्पीड़नों से गुजरना पड़ रहा है।
आज के इस वैज्ञानिक युग में यह समझना बहुत ही मुश्किल हो गया है कि समस्या हमारे समाज में पल रहे मानव जाति के कुछ हिस्सों के सोच में है या फिर हमारे कानून-व्यवस्था में ही कोई कमी है। आखिर हमारी सरकार कोई सख्त कार्रवाई कर या कानून के जरिए क्यों नहीं इस जटिल समस्या का समाधान खोज रही है? आखिर महिलाओं की दशा को लेकर हमारा यह समाज अपना कौन-सा चेहरा दिखाने की कोशिश कर रहा है?
आज महिलाओं को लेकर बढ़ते अपराध ने एक ऐसा भयानक रूप ले लिया है, जिसका नकारात्मक प्रभाव पांच साल की बच्ची से लेकर पचास साल तक की महिलाओं तक पर पड़ रहा है। विडंबना यह है कि खुद सरकार भी इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं कर पर रही है।
दुनिया भर में कराए गए सर्वेक्षणों के निष्कर्षों में ऐसे तथ्य सामने आए हैं कि महिलाओं के अधिकारों के लिए आंदोलन तो लगातार चल रहे हैं, नए विचारों की गूंज भी सुनाई पड़ती है, लेकिन इसका कोई स्थायी प्रभाव दिखाई नहीं देता। महिलाओं के साथ क्रूर मजाक सदियों पहले होता था, वह आज भी विद्यमान है।
’शोभनी सक्सेना, नई दिल्ली
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