कोई भी धार्मिक यात्रा और जुलूस या मुहर्रम के ताजिये हों, उनके आगे नाचते, लाठियां चलाते, मुंह से झाग निकालते, आसपास चलते लोगों पर कहर बरपाते लड़कों का हुजूम होता है। सड़कों पर ट्रैफिक जाम, विवश लोग। कुछ समय पहले गणेश चतुर्दशी के बाद प्रतिमा विसर्जन के दिन भक्तों ने रिंग रोड से विकास मार्ग तक ‘चलती दिल्ली’ को रोक दिया था। भक्त ट्रकों में रखी प्रतिमाओं के साथ सड़कों पर ढोल-मंजीरे बजाते, नाचते, लाउडस्पीकर में गाते जा रहे थे, आते-जाते वाहनों को रोक कर उन्हें टीका लगाते। रिंग रोड पर लगभग चार सौ ट्रक प्रतिमा विसर्जन के लिए खड़े थे। विसर्जन के दौरान यमुना में लोग डूब रहे थे, बचाव का प्रबंध नहीं था। एक तरफ भक्तों का उन्माद था तो दूसरी ओर प्रशासन की लापरवाही। न कहीं रोकटोक, न पुलिस। बांस की बल्लियां भी नहीं, पानी की गहराई का अनुमान लगाना संभव नहीं था। लोगों में अपनों के सुरक्षित लौटने की चिंता थी। अगले दिन भी लोग डूबे! फिर वही लापरवाही।

कारण और भी है। धर्म का राजनीतिकरण। वोट बैंक की नीति ने चारों तरफ अव्यवस्था फैला रखी है। धार्मिक आयोजनों को राजनीतिक पार्टियां अपना समर्थन देती हैं और इन आयोजनों में लगने वाले पोस्टरों में अपना प्रचार भी करती हैं। दिन में पांच बार मस्जिद में लाउडस्पीकर पर पढ़ी जाने वाली नमाज। विशेष दिनों में मंदिरों में देर रात तक ढोल, शंख ध्वनियां और भजनों का लाउडस्पीकर पर शोर। कानूनन इन पर प्रतिबंध है। पर कहां है प्रतिबंध? शोर रुका है?

इस ध्वनि प्रदूषण को बिना राजनीतिक इच्छा के रोका ही नहीं जा सकता। पानी में विसर्जित होने वाली हजारों की संख्या में मूर्तियों से जल प्रदूषण का खतरा बढ़ता जा रहा है। ये मूर्तियां सिर्फ मिट्टी की नहीं होतीं। इनमें तरह-तरह के रसायनों, रंग-रोगन और पेंट भी रहते हैं। धर्म के नाम पर होने वाली प्राकृतिक स्रोतों की इस विनाशलीला को रोका जाना चाहिए। पर कैसे रुकेगा यह सब, जब तक इन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है। कोई रास्ता तो निकालना होगा।

इसका एक रास्ता है धर्म को ‘व्यक्तिगत स्तर’ पर माना जाना और इसके सार्वजनिक प्रदर्शन पर रोक। ऐसा कई देशों में है। विशेष रूप से मंदिरों-मस्जिदों और जागरण जैसे आयोजनों में लाउडस्पीकर पर पूरा प्रतिबंध। अगर राजनेता इसके आड़े न आएं तो यह संभव हो सकता है। राजनीति न हो तो इसमें इतनी कठिनाई नहीं होगी। यह एक अनिवार्य कदम होगा। ध्वनि प्रदूषण को रोके जाने का और वातावरण को प्रदूषित न किए जाने का। इस पर हम सभी को और सरकारों को भी ‘सचेत’ होना होगा। धार्मिक संकीर्णताओं को उलांघ कर एक ‘निर्मल’ भारत का निर्माण हो सकेगा। जहां धर्म के नाम पर होने वाली अघोषित ‘हिंसा’ एक दिशा में तो थम सकेगी!

 

कमल कुमार, नई दिल्ली

 

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