इतिहास से हमने यह सीखा कि हमने इससे कुछ नहीं सीखा! मध्ययुग में अरब और तुर्क आक्रमणकारी अपने धर्म का प्रचार करने के लिए लूटपाट करते हुए भारत आए और तलवार के दम पर यहां के लोगों का धर्म परिवर्तन कराया और आज करीब एक हजार साल बाद भी इतिहास खुद को वैसे ही दोहरा रहा है और शक्ति और सत्ता के उन्माद में लोगों की ‘घर वापसी’ (धर्म परिवर्तन) कराया जा रहा है।
यही है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘सबका साथ सबका विकास’? संदेश साफ है अगर आप हिंदू हैं तभी विकास की आशा रखें। विकास भी कैसा? इसकी कोई परिभाषा नहीं है इसी से संतोष रखिए की आप हिंदू हो गए। भारतीय जनता पार्टी चुनाव तो रोटी, कपड़ा और मकान के नाम पर लड़ती है और सत्ता में आने पर सिर्फ और सिर्फ हिंदुत्व का कार्ड खेलती है।
धर्म जैसी चीज, जिसका संबंध पूर्ण रूप से अंत:करण से है, उसे हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। जबकि हमारे संविधान के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह अपने अंत:करण के अनुसार जिस भी धर्म का चाहे और जब चाहे अनुसरण कर सकता है। इसी मूलाधिकार में यह अर्थ भी सन्निहित है कि कोई व्यक्ति चाहे तो किसी भी धर्म का पालन न करे और चाहे तो सभी धर्मों का पालन करे या पूरा जीवन प्रत्येक धर्म के शोध और अनुसंधान में लगा दे और जिसमें उसे आध्यात्मिक शांति मिले या जिससे उसकी आध्यात्मिक पिपासा शांत हो उसे अपनाए। ऐसा करने के लिए भारत का प्रत्येक नागरिक स्वतंत्र है जिसे धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार कहा जाता है। और ऐसा करते हुए उसको सरकारी सहायता या योजना द्वारा मिलने वाले लाभ पर कोई विपरीत फर्क नहीं पड़ेगा।
पर ऐसा लगता है कि भाजपा सरकार अपनी प्रशासनिक और नैतिक चूकों को छिपाने के लिए हर तरह के हथकंडे अपना रही है या जो लोग ऐसा कर रहे हैं उन्हें ऐसा करने के लिए मौन सहमति दे रही है।
उत्तर प्रदेश का आगामी (2017 का) विधानसभा चुनाव भी लक्ष्य हो सकता है। लेकिन यह बेहद दुखद है कि जिस सत्तारूढ़ दल का लक्ष्य लोगों को रोजगार देना होना चाहिए उसी का एक अनुषंगी संगठन ऐसी राजनीति कर रहा है। जिन लोगों का धर्म परिवर्तन करवाया गया है वे काम तो वही करेंगे, जो पहले करते थे और उन्हें जिस जातीय आधार पर रखा गया होगा, वह भी सवर्ण वर्ग होगा, ऐसा संभव नहीं प्रतीत होता है। ऐसे में क्या संदेश देने का प्रयास हो रहा है?
विपुल प्रकर्ष, इलाहाबाद
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