जनसत्ता 9 अक्तूबर, 2014: पटना के गांधी मैदान में रावण दहन के दौरान अफवाह से मची भगदड़ में जिस तरीके से लोग एक-दूसरे के पैरों तले कुचल कर मारे गए वह कष्टदायक है। इस हादसे ने केवल पटना के लोगों को ही नहीं, बल्कि पूरे देश को गमगीन कर दिया। दुनिया एक बार फिर सोचने को मजबूर हुई कि भारत अब भी मेले और अन्य सार्वजनिक भीड़भाड़ वाले स्थानों पर भगदड़ से होने वाली मौतों से बेपरवाह और गैर-जिम्मेदार देश है। ऐसी घटना उस कार्यक्रम में हुई, जहां खुद उस राज्य के मुख्यमंत्री कुछ समय पहले तक मौजूद रहे हों। मुख्यमंत्री के मैदान से जाते ही पूरी प्रशासनिक अमला रावण दहन देखने आए पांच लाख लोगों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया, जो हैरानी की बात है।
सच तो यह है कि जिस तरीके से गांधी मैदान में लोग मारे गए वैसे भेड़-बकरियां भी नहीं मरतीं। निस्संदेह हम एक बड़ी आबादी वाले देश हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि भीड़ के कारण महिलाओं और बच्चों समेत करीब तीन दर्जन लोगों की जान चली जाए। लोग काल के शिकार इसलिए बने, क्योंकि शासन-प्रशासन ने जनता की परवाह की ही नहीं। इस मामले को लेकर अगर राज्य सरकार तनिक भी सजग होती तो उसे उन अधिकारियों के खिलाफ तत्काल प्रभाव से कोई ठोस कदम उठाने चाहिए थे, जो गांधी मैदान में सुरक्षा के लिए तैनात किए गए थे।
अब शासन को चाहिए कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो इसके लिए ठोस उपाय किए जाने चाहिए और सरकारों को समझना चाहिए की लाशों पर कुछ रुपयों का मुआवजा देकर मृतक के परिजनों के दर्द पर मरहम नहीं लगाया जा सकता!
अवनिंद्र कुमार सिंह, खोजवां, वाराणसी
फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta
ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta