जनसत्ता 11 नवंबर, 2014: इन दिनों महंगाई वृद्धि दर में कमी का श्रेय लेने की होड़ लगी हुई है। पहले यह स्पष्ट कर लेना चाहिए कि महंगाई दर में कमी का अर्थ महंगाई में कमी नहीं है। दर में कमी से तात्पर्य यह है कि महंगाई जिस गति से बढ़ रही थी, उस गति में कमी आई है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का भाव एक सौ चौवालीस डॉलर प्रति बैरल तक हो गया था जो अब घट कर बयासी डॉलर प्रति बैरल हो गया है। इस स्थिति का लाभ लेते हुए भारत सरकार ने डीजल को नियंत्रण मुक्त कर दिया है। इसके पहले यूपीए सरकार पेट्रोल को नियंत्रण मुक्त कर चुकी है। अर्थात अब बाजार इनके भाव तय करेगा। अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां अनुकूल होने से अभी खतरे का अहसास नहीं हो रहा है और इन निर्णयों का जनविरोधी चरित्र समझ में नहीं आ रहा है।
तेल के दामों में जो कमी आई है उसका लाभ उपभोक्ताओं को नहीं मिल रहा है, न यातायात सस्ता हुआ न माल भाड़ा। उपभोक्ता सामग्री के खुदरा मूल्यों पर नियंत्रण की कोई प्रणाली या चिंतन नहीं है। इसे समझने के लिए एक उदाहरण पर्याप्त है। फुटकर में जब मूंगफली तेल 150 रुपए प्रति लिटर बिक रहा था, नमकीन के भाव 150 रुपए किलोग्राम कर दिए गए और जब इस तेल का खुदरा भाव घट कर सौ रुपए प्रति लिटर हो गया तो नमकीन के भाव अभी भी 150 रुपए प्रति किलोग्राम ही हैं। थोक के भाव बढ़ने पर खुदरा भाव तत्काल प्रभाव से बढ़ा दिए जाते हैं और थोक के भाव घटने का लाभ फुटकर उपभोक्ताओं को नहीं मिलता। क्या इसे ही अंधेर नगरी चौपट राजा कहते हैं।
सुरेश उपाध्याय, गीतानगर, इंदौर
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