संपादकीय ‘ईमानदारी की मिसाल’ (9 दिसंबर) पढ़ा। यह आज की संरचना में एक बड़ी परिघटना है। आए दिन घोटाले और भ्रष्टाचार की कहानी सामने आती रहती है। इतने घोटाले हो चुके हैं कि उनकी गिनती रखना भी आदमी को भारी पड़ रहा है- और अगले ही क्षण एक बड़ा धोखेबाज सामने आ जाता है। सभी हैरान, परेशान हैं। कोई भी कुछ कर पाता नहीं- सिवाय खामोशी से देखने के, पर यहीं एक बात और है जिसे नोट किया जाना चाहिए कि घोटाले, भ्रष्टाचार को कभी भी समाज स्वीकार नहीं करता और न ही ये किसी समाज के मूल्य हैं, यह सिर्फ कुछ खामियों का फायदा उठा कर तिकड़मी लोगों का शगल है। और अगर इन लोगों पर कड़ाई से कार्रवाई की जाए तो बहुत सारी व्याधि आप से आप दूर हो जाएगी।
सामाजिक जीवन और आचरण में हमसे ईमानदारी के साथ जीने के मूल्य की सभी उम्मीद करते हैं। ईमानदारी आचरण में बरतने की बात है। आज चाहे जितना भ्रष्टाचार का बोलबाला हो गया हो- ईमानदारी खत्म नहीं हुई है- वह हमारे व्यक्तिगत आचरण में है। घर में, परिवार के भीतर लोग एक ईमानदार संवेदन के साथ रहते हैं और जिस घर-परिवार में मां-बाप बच्चों को अपने आचरण से ईमानदारी का पाठ पढ़ाते हैं वे बच्चे खुद ही अपने जीवन में ईमानदारी को उतार लेते हैं। ईमानदारी संस्कार के गुण सूत्र से हमारे भीतर आती है। अगर कोई व्यक्ति अपनी संरचना में होते हुए ईमानदार, संतुष्ट और संवेदनशील है तो जाहिर है कि उसकी संततियां भी ईमानदारी के मूल्य के साथ कार्य करेंगी और आगे बढेगी।
संपादकीय में ईमानदारी के मूल्य को अपने आचरण में उतारते इन बच्चों के बहाने सही लिखा गया है कि घरेलू कामकाज की आय पर निर्भर किसी दंपति को कितनी आमदनी होती होगी। लेकिन उतने में ही गुजारा करते उस परिवार ने ईमानदारी और नैतिकता का मूल्य सीखा है, यह एक मिसाल है। और यह बात बराबर कमजोर तबकों में देखी गई है और वे अपने आचरण से उसे साबित करते रहे हैं। आगे इसी बात को और साफ किया गया है कि ‘चकाचौंध से भरे शहरों-महानगरों के किसी गुमनाम कोनों में खड़े ऐसे ही लोग दुनिया में नैतिकता और इंसानियत में भरोसा बनाए रखते हैं, लेकिन विकास की मौजूदा परिभाषा और दायरे से वंचित भी यही वर्ग है।’
आज जरूरत इस बात की है कि व्यवस्था का सबसे ज्यादा ध्यान इन पर जाए। विकास की मुख्य परियोजना से अधिक से अधिक वंचित और गरीबों को जोड़ा जाए। ईमानदारी और व्यक्तिगत मूल्य को सामाजिक मूल्य के रूप में समाज में व्यापक बनाया जाए। इसे किसी सीख/ उपदेश से नहीं, बस आचरण में ईमानदार हों, कर्तव्य परायण और संवेदनशील हों- समाज स्वत: आगे बढ़ेगा। फिर इस तरह की घटनाएं आश्चर्यजनक नहीं लगेंगी।
विवेक कुमार मिश्र, बारां रोड, कोटा
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