जनसत्ता 15 नवंबर, 2014: छत्तीसगढ़ में आयोजित सरकारी नसबंदी शिविर में चौदह महिलाओं की मौत हो गई। किसी सरकार की लापरवाही का इससे अधिक क्या सबूत हो सकता है! अक्सर ऐसे हादसों पर स्वास्थ्य मंत्री गमगीन मुद्रा में दुखी होने का नाटक करते हुए बयानबाजी करते हैं कि भविष्य में पूरी कोशिश की जाएगी ताकि ऐसी दुखद घटनाएं न हों। यह तब की बात है जब सत्ता के नशे के बावजूद नेताओं में कुछ मानवीय संवेदनाएं बाकी थीं। पर ऐसी त्रासदी पर कोई हंस भी सकता है, इस पर भरोसा ही नहीं होता यदि अखबारों और सोशल मीडिया में हंसते हुए स्वास्थ्य मंत्री का चेहरा न देखा होता। शायद इतना पर्याप्त नहीं था इसलिए मुख्यमंत्री ने कमी पूरी करते हुए कहा कि नसबंदी डॉक्टर करता है न कि स्वास्थ्य मंत्री।
मुख्यमंत्रीजी, यह सबको मालूम है कि काम तो डॉक्टर, कंपाउंडर, नर्सें, अधिकारी और कर्मचारी ही करते हैं। मंत्री तो जनता के पैसों से बड़े-बड़े बंगलों में रहते हैं, कारों का काफिला रखते हैं और जो पैसा दवाइयों पर खर्च होना चाहिए उससे अपने फोटो वाले होर्डिंग्स लगवा कर, अखबारों में विज्ञापन देकर और तरह-तरह से केवल अपना प्रचार करते हैं। वे बेईमानी से पैसा बनाने का कोई मौका नहीं छोड़ते।
मुख्यमंत्रीजी, यदि आपको चैदह महिलाओं की मौत पर अपने लाड़ले स्वास्थ्य मंत्री की अमानवीय, असंवेदनशील और आपराधिक हंसी पर उनका बचाव करते हुए लज्जा नहीं आती तो फिर आप इस काबिल भी नहीं बचते कि आप से कुछ भी कहा जाए। सवाल केवल जनता से किया जा सकता है कि ऐसे नेताओं को बर्दाश्त करने के लिए कब तक अभिशप्त रहेगी? और क्यों रहेगी?
श्याम बोहरे, बावड़ियाकलां, भोपाल
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