जनसत्ता 13 अक्तूबर, 2014: सुनंदा पुष्कर की मौत का मुद्दा एक बार फिर तूल पकड़ रहा है। डॉक्टरों और पुलिस की रिपोर्ट चाहे कुछ भी कहे, एक बात दृढ़तापूर्वक कही जा सकती है कि सुनंदा ने आत्महत्या कभी नहीं की होगी! सुनंदा एक निहायत ही भावुक, सेवाभावी और संवेदनशील किस्म की महिला थी, वह एक बुलंद हौसले और जीवट वाली महिला भी थी।

मेरे एक मित्र ने सुनंदा के इस ‘बुलंद हौसले’ वाले पक्ष पर मुझे एक घटना मेल की है, जिसे मैं साझा कर रहा हूं: ‘सुनंदा का एक वाकया मुझे याद है। तब वह कश्मीर में छानपुरा इलाके में रहती थी और वीमेंस कॉलेज, श्रीनगर में पढ़ती थी! एक दिन रोजमर्रा की तरह, मैं अपने कार्यालय बाइक पर जा रहा था और मुझे ‘नुमाइश चौक’ पर छोटी भीड़-सी दिखाई दी। भीड़ में मैंने एक परिचित लड़की को भी देखा। बाइक रोक कर मैंने उस लड़की से कारण पूछा तो पता चला कि छानपुरा में मिनी बस में कई लड़कियां सवार हुई थीं और रास्ते में किसी लफंगे लड़के ने किसी एक लड़की के साथ छेड़खानी की थी और सुनंदा ने उस लड़के को मिनी बस से उतार कर उसकी धुनाई की थी! (शिबनजी) मैं आपसे सहमत हूं कि वह एक निर्भय और बहादुर औरत थी। आत्महत्या करने की बात उसके खून में नहीं हो सकती थी, आखिर वह एक बहादुर सैनिक की बेटी भी तो थी!

सच्चाई क्या है? सामने आनी चाहिए। यह भी कि इतने दिनों बाद विसरा-रिपोर्ट क्यों आई? सुनंदा की मौत की कहानी पर से शीघ्रातिशीघ्र परदा उठना चाहिए, ताकि दिवंगत की आत्मा को शांति मिले। सरकार चाहे तो सच्चाई जानने के लिए एक उच्चस्तरीय जांच-समिति का गठन कर सकती है।

शिबन कृष्ण रैणा, अलवर

 

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