जनसत्ता 12 नवंबर, 2014: निरंजन शर्मा की टिप्पणी ‘पढ़ने की जगह’ (दुनिया मेरे आगे, 31 अक्तूबर) से जो सूचना मिली वह अविश्वसनीय लेकिन बेहद सुखद लगी। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू शहर में जो संभव हुआ है वह प्रदेश और देश के हर जिले में होना कल्पनातीत है पर असंभव नहीं है।
जब पुस्तकों के प्रति लोगों के दिलों में जगह घटती चली जा रही है ऐसे में जिला स्तर पर अतिआधुनिक पुस्तकालय का होना, जैसा कि निरंजन बतलाते हैं- पर्याप्त किताबें, ई-बुक, बुक कैफे, वाई-फाई, गोष्ठी करने के लिए जगह, बहुत अच्छा है। दिल्ली में कॉफी हाउस होता था, जहां साहित्यकार मिल बैठते थे जो अब वर्षों से बंद है वही स्थान कुल्लू में बनता नजर आ रहा है।
जब कोई बंदा जेएनयू से हो तो देश की कोई भी जगह पढ़ने की जगह बन सकती है। बधाई दूसरा कैफे अपने ही शहर में पा जाने की। पर अब बारी आपकी है कि इसे दिल्ली का कैफे कब और कैसे बनाते हैं!
रमेश चंद मीणा, जवाहर नगर, बूंदी
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