विवादास्पद बयानों के लिए जाने जाने वाले बिहार के मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने अब नया शगूफा छेड़ा है। हालांकि, बौद्धिक और अकादमिक दुनिया के लिए यह कोई नई बात नहीं है। यह पुरानी बहस है। मांझी ने कथित अगड़ी जाति के लोगों को विदेशी कहा है।
भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां सभी को संविधान के दायरे में रह कर विचार रखने की स्वतंत्रता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र का सबसे बड़ा उपहार है। लेकिन इसी का फायदा उठाकर कुछ नेता विवादित बयान देकर सुर्खियों में बने रहना चाहते हैं।
भारत में अनेक धर्म और जातियां निवास करती हैं और राजनीतिक पार्टियां जाति, धर्म के मुद्दे को उछाल कर राज करती हैं। चुनाव प्रचार में मानवता से हट कर पार्टियां हिंदू और मुसलिम का मुद्दा उठा कर वोट मांगती हैं। देशी और विदेशी का मुद्दा भी कुछ इसी प्रकार का है। जीतनराम मांझी के मुताबिक देश के मूल निवासी दलित और आदिवासी हैं और उच्च जाति के लोग आर्यों के वंशज हैं और ये विदेश से आए हुए हैं। प्रख्यात इतिहासकारों, विद्वानों की किताबों को पढ़कर आईएस और पीसीएस बने अधिकारियों के लिए आर्य-अनार्य की बहस कोई नई बात नहीं है। इतिहास की चर्चित किताबों में भी यही कहा गया है। प्रगतिशील और वामपंथी इतिहासक ‘आर्य बाहर से आऐ’ धारणा को लेकर आश्वस्त और निश्ंिचत रहते हैं! लेकिन ज्ञान की किसी भी शाखा में निरंतर शोध होते रहते हैं। चीजें नए शोध से बदल जाती हैं। भाषा विज्ञान और अनेक ज्ञान की शाखाओं की मदद लेनी पड़ती है।
डॉ रामविलास शर्मा जैसे प्रख्यात मार्क्सवादी चिंतक और समालोचक की मान्यता है कि आर्य-अनार्य की बहस साम्राज्यवादी-उपनिवेशवादी शक्तियों का हथियार है। आर्य भारत के ही निवासी हैं लेकिन रामविलास शर्मा की इस मान्यता को लेकर कुछ वांमपंथी इतिहासकार-साहित्यकार उन्हें संघी और ब्राह्मणवादी घोषित कर चुके हैं! रामविलासजी की स्थापना है कि आर्यों की कोई अखंड इकाई नहीं थी। कुल मिलाकर यही कहना है कि आज यह बेकार का चिंतन है कि आर्य बाहर से आए थे या यहीं के थे। भारत अनेकानेक जातियों, संस्कृतियों का ठीहा रहा है। इसलिए मांझीजी को इस अकादमिक बहस में पड़ने के बजाय जनता के सभी वर्गों के कल्याण की ओर ध्यान देना चाहिए।
दलित-शोषित और पिछड़ी जातियों का पेट इससे नहीं भरने वाला कि वे भारत के मूल निवासी हैं। उनके जीवन को, उनकी समस्याओं की ओर ईमानदारी से ध्यान देना चाहिए। उनकी नून, तेल, लकड़ी की रोजमर्रा की समस्याएं हल करनी चाहिए।
संजय कुमार यादव, खोड़ा, नोएडा
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